दोस्तों हम यहाँ शेयर करने जा रहे है, कुमारी मैना की जीवनी (Biography of Kumari Maina) और उनके जीवन के संघर्ष की कहानी. मित्रों जो व्यक्ति हंसते-हंसते अपने देश की आजादी के लिए शहीद होता है. उसका नाम इतिहास में अमर हो जाता है. और लोग श्रद्धा और आदर से उसका नाम लेते हुए उसे याद करते हैं. संसार में उसी पुरुष या स्त्री का जन्म सार्थक होता है. जो अपने देश या संपूर्ण मानवता के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देता है. भारतीय इतिहास में जहां एक और जयचंद तथा मीर जाफर जैसे देशद्रोही विश्वासघाती हुए, जिन्होंने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दुश्मनों से मित्रता कर भारत मां को बेच डाला था. और उनके कारण ये भारत माँ गुलामी की जंजीरों में जकड़ गई.
वहीं आजादी के कुछ ऐसे दीवाने भी हुए हैं. जिन्होंने इस देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया. ऐसे सपूतो में महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, मंगल पांडे, अजीजन, रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे, चंद्रशेखर आजाद, शहीद ए आजम भगत सिंह, खुदीराम बोस आदी के नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. जहां मानसिंह ने सत्ता प्राप्त करने के लिए मुगल सम्राट अकबर से बेटी-रोटी रिस्ता स्थापित किया. तो उसी राजस्थान के महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर भी अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी.
कुमारी मैना कौन थी?
दोस्तों कुमारी मैना नाना साहब की दत्तक पुत्री थी. कुमारी मैना ने बचपन से ही राष्ट्रप्रेम की भावना कूट-कूट भरी हुई थी. इसका उत्साह तथा त्याग देखते ही बनता था. प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उसने अपनी अवस्था के अनुकूल भाग लिया. नाना साहब उसकी दृढ़ता और देशभक्ति से भली भाती परिचित थे.
Summary
नाम | कुमारी मैना |
उपनाम | मैना |
जन्म स्थान | बिठूर कानपूर |
जन्म तारीख | 1844 ईस्वी |
वंश | पेशवा |
माता का नाम | — |
पिता का नाम | नाना साहब पेशवा (दत्तक पुत्री) |
पति का नाम | अविवाहित |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | 13 वर्ष की उम्र में भारत की भूमि के लिए जिंदा जल गयी पर अंग्रेजो को कोई राज नहीं बताया था |
रचना | — |
पेशा | राजा की पुत्री राजकुमारी |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | उत्तर प्रदेश |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | हिंदी |
मृत्यु | 03 सितंबर 1857 |
जीवन काल | 13 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Kumari Maina (कुमारी मैना की जीवनी) |
कुमारी मैना को नाना साहब बिठूर महल में क्यों छोड़ गए?
जब 1857 किसी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ हुआ तो. नाना साहब का बिठूर के राज महल में अपनी पुत्री को छोड़ते हुए दिल भर आया. अंग्रेजों की जित क्रम प्रारंभ हो चुका था. और सेना को एकत्रित करके मोर्चा लेने की दृष्टि से नाना साहब का बिठूर छोड़ना आवश्यक हो गया था. तब उन्होंने अपनी पुत्री मैना से कहा बेटी तुम्हें इस महल में अकेली छोड़ते हुए मेरी आत्मा नहीं मांग रही है. मैं तो फिर कहता हूं कि तुम मेरे साथ चलो यह महल किसी सेवक की देखरेख में हम छोड़ सकते हैं.
तब मैना कुमारी ने बोला पिताजी हम महल को किसी और की देखरेख में छोड़ दे या सुना छोड़ दे इसमें क्या फर्क पड़ता है. सवाल तो इस बात का है कि यहाँ रह कर अगर क्रांतिकारियों को जो सूचना समय-समय पर मैं दे सकती हूं. वह सूचनाएं सेवक तो नहीं दे सकता इसलिए मैं स्वय यहाँ रहना चाहती हूं.
बिठूर पर अंग्रेजों का आक्रमण
अपनी बेटी मैना कुमारी से विदा लेकर नाना साहब बिठूर से प्रस्थान कर गए. बिठूर के राजमल पर अंग्रेजों ने छापा मारकर सेवकों को बंदी बना लिया. परंतु मैना बच निकली, इस पर सेनापति में राजमहल को तोपों के गोलों से महल उड़ाने का आदेश दिया। उस समय मैना महल के अंदर से प्रकट हुई और कड़कती आवाज में कहा ठहरो गोले मत दागना। सेनापति बोला मैना हमें ऊपर से आदेश आया है.
अंग्रेजी सेनापति को मैना पहचान गयी थी. क्यों की मैना और अंग्रेज सेनापति की बेटी “मेरी” एक साथ स्कूल में पढ़ी थी और दोनों घनिस्ट मित्र थी. साथ ही मैना अंग्रेज सेनापति को उसके पिता जी नाना साहब के दरबार में भी देखा था. हां में तुम को पहचान गया हु मैना, यह कह कर बिठूर के राज महल की तरफ छोड़ी जानी वाली टोपे रोक दी गयी थी.
लेकिन कुछ ही देर में वहां पर अंग्रेज सेना का दूसरा अधिकारी आउट्रम आ पहुंचा और राज महल को नहीं गिराने का कारण पूछा। तब अंग्रेज जनरल ने कहाँ, सर क्या हम राज महल को न तोड़ नाना साहब को पकड़े. इस पर आउट्रम ने जोर की आवाज़ में बोले और बिठूर के राज महल को तोड़ने के आदेश दिए. महल कुछ ही देर में जमीन जदोह हो गया था. और राजकुमारी मैना को कैद कर लिया गया और उनको अनेक यातनाए दी गयी.
1857 की क्रांति में नाना साहब की दत्तक पुत्री मैना ने क्या योगदान दिया?
मित्रों 1857 की क्रांति में हमारे देश की आजादी के लिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अनेक त्याग एवं बलिदान दिए हैं. इनी ललनाओं में से एक थी कुमारी मैना. जिसने अपनी जान तक कुर्बान कर दी पर अंग्रेजों के समक्ष गुप्त राज, क्रांति की योजनाओ को प्रकट नहीं किया.
दोस्तों कुमारी मैना को कैद कर के क्रन्तिकारियो की गुप्त सुचना देने के लिए अनेक यातनाए दी पर कभी मुँह नहीं खोला। साथ ही उन्होंने पुरुस्कार और प्रलोभन देकर उनको अपनी तरफ मिलाना चाहा. पर कुमारी मैना टस से मस नहीं हुई. अंत में अंग्रेजो ने नाना की इस दत्तक पुत्री को जिन्दा जलाने का आदेश दिया.
अपने विनाश की बात सुनकर आउट्रम भड़क उठा. और उसने आदेश दिया इस लड़की को पेड़ पर बांधकर मिट्टी का तेल छिड़ककर जिंदा जला दिया जाए. सैनिकों ने तुरंत अपने जनरल की आज्ञा का पालन किया.
दोस्तों जब आग की लपेटे उठकर मैना के मुखमंडल को चूमने लगी. तब आउट्रम ने कहा अब भी यदि तुम अपने पिता तथा अन्य क्रांतिकारियों के पते बता दो तो हम तुम्हें मुक्त कर देंगे और उपहार देंगे.
कुमारी मैना अविचलित खड़ी रही, आग की लपेटे उठती रही. वह स्वय भी किसी ज्वाला से कम नहीं थी. वह जीते जी अग्नि में झुलस कर मर गई. परंतु उसने क्रांतिकारियों के गुप्त रहस्य के बारे में कुछ नहीं बताया.
जब कुमारी मैना की बहादुरी देखकर अंग्रेजी महिलाएं भी रो उठी
धन्य है मैना, जिसने इस देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपनी जान तक कुर्बान कर दी. अंग्रेज महिलाएं उसकी बहादुरी को देखकर दंग रह गई थी. उनकी आंखों में आंसू की धारा बह रही थी, पर वह सिपाहियों को रोकने का साहस नहीं कर सकी. निसंदेह कुमारी मैना के त्याग और बलिदान से उसका नाम इतिहास में अमर हो गया. उसके बलिदान से हमे हमेसा प्रेरणा मिलती रहेगी. ऐसी महाना क्रन्तिकारी शहीद राजकुमारी को हमारी तरफ से शत-शत नमन.
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FAQs
Ans- कुमारी मैना को पेशवा नाना साहब की दत्तक पुत्री थी.