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मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद माने जाते हैं. जिन्होंने अपनी धार्मिक सहिष्णुता एवं श्रेष्ठ चारित्रिक गुणों से इस धर्म को एक महान धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया था. माननीय आधार पर इस धर्म की स्थापना करके उन्होंने आपसी सद्भाव को मैत्री का संदेश दिया था. सभी मनुष्य को ईश्वर की संतान बताते हुए उन्होंने धार्मिक सद्भाव एवं एकता का पाठ पढ़ाया था. हम यहाँ हज़रत मुहम्मद की जीवनी (Biography of Hazrat Muhammad). और हज़रत मुहम्मद की शिक्षाएं, इस्लाम और कुरान के धार्मिक सिद्धांत. की वो रोचक और अद्भुत जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले शायद ही जानकारी रखते हो. तो दोस्तों चलते है और जानते है, हज़रत मुहम्मद साहब की आश्चर्यचकित जानकारी.
हज़रत मुहम्मद साहब कौन थे? हज़रत मुहम्मद का जीवन परिचय (Biography of Hazrat Muhammad)
पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में हुआ माना गया है. और उनकी मृत्यु 8 जून 632 ईसवी को मानी जाती है. अरब देश के काबा नामक शहर में हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम हजरत अब्दुल्ला और माता बीबी आमना थी. ये लोग कोरेश नाम के घरानों से थे. जब वे 2 महीने के थे, तो उनके पिता का देहांत हो गया था. उनकी माता भी कुछ ही दिनों में चल बसी थी. उनका लालन-पालन दादा हजरत अब्दुल मुतलिक ने किया.
कुछ दिनों बाद उनका भी इंतकाल हो गया. अपने इंतकाल से पहले मुहम्मद साहब जिम्मेदारी उनके चाचा अबू तालिब को सौंप दी. जिन्होंने बड़े ही प्रेम और चाव से उनकी देखभाल की. बचपन से हज़रत मुहम्मद गंभीर स्वभाव के कम, तथा मीठा बोलने वाले थे. जबकि अरब के लोग दगाफरेब, झूठ बोलने में अपना जीवन बिताते थे. उनकी सच्चाई को देखकर लोगों ने अल-अमीन, अथार्थ सच्चा ईमानदार अथवा सत्यवती करते थे. बचपन से उनमें संतो के समक्ष गुण थे.
Summary
नाम | पैगंबर हज़रत मुहम्मद साहब |
उपनाम | मुहम्मद साहब, इस्लाम के जनक |
जन्म स्थान | काबा, सऊदी अरब |
जन्म तारीख | 570 ईस्वी |
वंश | कोरेश |
माता का नाम | बीबी आमना |
पिता का नाम | हजरत अब्दुल्ला |
पत्नी का नाम | खदीजा, सोदा बिन्त, आयशा, हफ्सा, ज़ैनब बिन्त, हिन्द बिन्त, ज़ैनब बिन्त, जुवैरीया बिन्त, राम्लाह बिन्त, रय्हना बिन्त, सफिय्या बिन्त, मयमूना बिन्त अल-हरिथ, मरिया अल-क़ीब्टिय्या |
उत्तराधिकारी | अबू बकर |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक |
रचना | कुरान |
पेशा | धर्म गुरु |
पुत्र और पुत्री का नाम | अल-क़ासिम, अब्दुल्लाह, इब्राहिम बेटियाँ जैनाब, रुक़य्याह, उम्कु ल्थूम, फ़ातिमा ज़हरा |
गुरु/शिक्षक | कोई नहीं |
देश | सऊदी अरब |
राज्य क्षेत्र | काबा, मदीना |
धर्म | इस्लाम |
राष्ट्रीयता | सऊदी अरब |
भाषा | अरबी |
मृत्यु | 8 जून 632 ईसवी |
मृत्यु स्थान | मदीना |
जीवन काल | उम्र 62) |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Hazrat Muhammad (पैगंबर हज़रत मुहम्मद की जीवनी) |
मुहम्मद साहब और बीबी खदीजा का मिलन
उनके समय में अरब में स्त्रियों पर विभिन्न प्रकार के अत्याचार हो रहे थे. झूठ, फरेब, आतंक का बोलबाला था. लोग अंधविश्वासों में डूबे हुए थे. बड़े होने पर हज़रत मुहम्मद साहब ने रोजगार व्यापार करने का कार्य शुरू किया. धंधे में ईमानदारी पर उन्हें विश्वास था. उनकी मेहनत और ईमानदारी की प्रशंसा इतनी फैली की बीबी खदीजा नामक महिला ने उनको सिराज भेजा. वे तिजारत करने के लिए बाहर गए, व्यापार में उनको काफी लाभ हुआ फिर वे मक्का आ गए. उनकी ईमानदारी से प्रभावित होकर बीबी खदीजा ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. उनकी अवस्था 24 वर्ष थी, तथा बीबी खदीजा उनसे काफी बड़ी थी. सुंदर आदर्श विवाहित जीवन निभाते हुए उनके 3 लड़के और 4 लड़कियां हुई.
मुहम्मद साहब की कहानी
हजरत मोहम्मद अपने घर परिवार के लोगों तथा नौकरों के साथ भी बहुत नरमी का व्यवहार रखते थे. सादा भोजन साधे कपड़े और अपना काम खुद करना तथा साफ सफाई रखना उनके स्वभाव में शामिल था. सांसारिक जीवन जीते हुए भी वे यह सोचा करते थे. कि लोगों को बुराई के रास्ते से कैसे हटाया जाए. कभी-कभी रेगिस्तान के एकांत में घंटों बैठे इस विषय पर गहन चिंतन किया करते थे. उस समय वह खाने-पीने की सुध भी भूल जाते थे. रेगिस्तान में गारे-हरा नामक एक गुफा, वहां अक्सर वे ध्यान लगाते थे. एक दिन गारे-हरा गुफ़ा में ध्यान मग्न अवस्था में खुदा के एक फरिश्ते ने दिव्य रूप धारण करके उनके समक्ष कहा. ले पढ़ अपने पालन करने वाले खुदा के नाम से तब फरिश्ते ने उन्हें सीने से लगाया. तो उन्होंने फरिश्ते द्वारा कही गई सभी आयते सही-सही दोहरा दी.
तू ही खुदा का बैंगबर है या खुदा की एकता की बातें बता. इस तरह अनपढ़ पैगंबर हजरत मोहम्मद ने अल्लाह के हुक्म से फरिश्ते जबरील के द्वारा दिए गए संदेश को सातवें स्वर्ग से लाकर वर्तमान रूप में लोगों को सुनाया. मोहम्मद साहब उसका उनको फाफी विरोध सहना पड़ा. अल्लाह से धर्म के प्रचार का आदेश मिला था. मक्का में उन्होंने यह जनता ने दिया, इस संदेश को सुनकर जनता ने तो उन्हें अपना पैगम्बर मान लिया. किंतु कुरैशी के लोग ईर्ष्या करने लगे. विरोध इतना बढ़ा की मोहब्बत साहब को मदीने की ओर प्रस्थान करना पड़ा.
पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब की मक्का से मदीना यात्रा और युद्ध
मक्का से मदीना तक की यात्रा कि यह घटना 20 जून 622 ईसवी को हुई, उनके दो पुत्र और चार पुत्रियां विरोधियों से संघर्ष में मारे गए. रेगिस्तान के भरी गर्मी में अंतिम लड़ाई में उनका एक बेटा और एक बेटी फातिमा ही बच पाई. भूखे प्यासे बच्चों के लिए बार-बार पानी मांगने पर भी लोगों ने उन्हें पानी नहीं दिया. बेटी फातिमा वहाँ शहीद हो गई. अपने बेटे की कुर्बानी के समय उन्होंने कहा. ऐ मेरे बच्चे मैं ख्वाब देख रहा हूं, और तुम्हें जिबह कर रहा हूं, तुम्हारी क्या राय है. अल्लाह ने चाहा तो मुझे सब्र करने वालों में ही पाइयेगा. बाप ने बेटे को माथे के बल लिटाया. यह परीक्षा खुदा ने पैगंबर मोहब्बत की ली थी. इब्राहिम ने अपने बच्चों को कुर्बानी करने के लिए छुरी चलाई थी.
किंतु कुछ ऐसा हुआ कि वहां एक बकरा था, जो उनके बेटे की जगह खड़ा था. आकाशवाणी हुई कि तुम मेरी परीक्षा में सफल हुए, इस तरह इस्लाम धर्म का प्रचार करते हुए उन्हें बहुत से अत्याचार भी झेलने पड़े. जैसे जैसे मुसलमानों की जमात बढ़ती गई वैसे-वैसे उनके खिलाफ जुल्म बढ़ता गया. लोगों ने उनके रास्ते में कांटे बिछाए, बुरी बुरी गालियां दी, सिर पर कूड़ा करकट फेका, नमाज पढ़ते समय उनकी गर्दन पर पाखाना तक रख दिया था. अरब की जलती रेत पर लिटा कर सीने पर भारी तपे चट्टान तब तक उनके अनुयायियों पर लादे जाते, जब तक वह मर नहीं जाते. कई आदमियों के टुकड़े टुकड़े कर डाले, उनके नए साथी ने धर्म पर दृढ़ता से डटे रहे.
कर्बला की जंग में नवासे की शहादत
हज के समय वे इस्लाम का उपदेश सुनाकर कर मक्का जा रहे थे. तो दुश्मन उनको मारने की फिराक में थे. वहां से 52 वर्ष की अवस्था में जब वे मदीना पहुंचे. तो मक्के में रहने वाले उनके विरोधियों ने मदीने पर हमला कर दिया. सुलह की कोशिश के बाद भी लड़ाई छिड़ी और घमासान युद्ध हुआ. कर्बला के मैदान में उनके नवासे ने शहादत पाई. कर्बला की जंग में अपने साथियों के साथ लड़ते हुए उन्होंने जालिमों से समझौता नहीं किया. ६ माह का मासूम असगर हजरत अब्बास, कासिम न जाने कितने जानीशा इस्लाम के लिए कुर्बान हुए.
इस तरह अल्लाह के घर काबा का निर्माण हुआ. 124000 मुसलमानों के साथ हज गए. काबा के लोगों ने भी हार मानकर इस्लाम कबूल कर लिया. इस तरह अरब में मुस्लमान धरम की ज्योति जगमगा उठी. 63वर्ष की उम्र में मक्का का आखिरी हज करते हुए वे बहुत बीमार हो गए थे. किन्तु कहाँ जाता है, उन्होंने नमाज अदा करनी नहीं छोड़ी. मरते समय एक आदमी के तीन हिरहम पैसे चुकाना नहीं भूले.
कुरान के धार्मिक सिद्धांत
इस्लाम धर्म के धर्म की मुख्य किताब कुराने पाक है. यह आज से लगभग 1400 वर्ष पहले लिखी गई थी. इसमें इस्लाम धर्म के सिद्धांतों का व्यवहारिक रूप पता चलता है. अरबी, फारसी, उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच आदि भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया है. कुरान में हजरत मोहम्मद साहब की आयते लिखी गई है. यह पुस्तक पैगंबर साहब तथा उनके चेलों के द्वारा 23 वर्षों में खुदा की सुनी हुई आकाशवाणी के आधार पर कुरान में उतारी गई. यह पुस्तक इस्लाम की बुनियाद है, इस धर्म के मुख्य सिद्धांतों में ईश्वर की एकता, भाईचारा रखना, स्त्रियों और गुलामों की मदद करना.
दिन में 5 बार मक्का की ओर मुंह करके नमाज पढ़ना, शुक्रवार के दिन सामूहिक रूप से नमाज में भाग लेना, अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत हिस्सा दान देना, जीवन में एक बार हज जाना प्रमुख रूप से है. मुस्लिम धर्म के सिद्धांतों में खुदा को एक मानते हुए सभी पैगंबरों को एक मानना, हजरत मोहब्बत को आखिरी पैगंबर मानना प्रमुख है. इस्लाम धर्म का सार है, खुदाया ईश्वर की मर्जी पर अपने आप को समर्पित कर देना.
हजरत मोहम्मद साहब के चमत्कार
पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपने जीवन में बहुत से चमत्कार किए. जिसमें उन्होंने बुराई को अच्छाई में परिवर्तित कर दिया था. इस प्रकार उन्होंने एक दुष्ट महिला का हृदय परिवर्तन किया. जब हजरत मोहम्मद साहब उसके घर के पास से होकर नित्य गुजरते थे. तब वह महिला उनके सिर पर कूड़ा करकट फेक देती थी. एक बार जब वहां से गुजरे तो उनके सिर पर कूड़ा करकट नहीं गिरा. ऐसे में हजरत साहब यह सोचने लगी कि आखिर बात क्या है. उन्हें बुढ़िया की बीमारी के बारे में पता चला, तो वे उसकी खैर खबर पता करने उसके घर गए. मोहब्बत साहब का इतना बड़ा बर्ताव देखकर बुढ़िया इस कदरलज्जित हुई, कि उसने मुसलमान धर्म ग्रहण कर लिया. उसका नाम अजमत था.
कुरैशी युवा मोहब्बत साहब का सिर काटकर क्यों संकल्प लिया था?
इस तरह बदर के युद्ध में अनेक क़ुरैशी युवक मोहब्बत साहब का सिर काटकर लाने का संकल्प कर चुके थे. दासूर नामक एक क़ुरैशी जब पेड़ के नीचे सोए हुए हजरत मोहब्बत पर चुपके से हमला करने के प्रयास में था. तब अचानक हजरत के मुख से अल्लाह का एक स्वर निकला. कि दासूर उनके पैरों पर गिर पड़ा और उनका शिष्य बन गया. एक व्यक्ति उनके घर इस लिए आया था. कि वह हजरत को पूरी तरह से परेशान करके छोड़ेगा. इसलिए उसने इतना खाना खाया कि हजरत तो क्या घर के किसी भी सदस्य के लिए खाना नहीं बचा. सभी भूखे पेट सो गए थे.
इधर अधिक खाना खा लेने की वजह से उस व्यक्ति को इतनी बदहजमी हुई. कि उसने सोते सोते ही बिस्तर खराब कर दिया. उसके बाद वह उस स्थान से भाग खड़ा हुआ. सुबह जब हजरत साहब उसके कमरे में गए तो उन्हें वह व्यक्ति नहीं मिला. कमरे की ऐसी बुरी दशा देखकर वह कमरे की सफाई में लग गए. वह युवक अपनी तलवार लेने जब वापस आया तो हजरत साहब को अपनी गंदगी साफ करते पाया. उनके चेहरे पर जरा सी की शिकन तक नहीं थी. वह युवक शर्मिंदा होकर उनके चरणों पर गिर पड़ा और अपने किए की माफी मांगी.
उपसंहार
इस्लाम धर्म विश्व के कोने कोने में फैला हुआ है. इस धर्म के अनुयाई हमारे देश में भी काफी संख्या में है. मुसलमानों में राजपूत तथा पंजाब और राजस्थान की कुछ जातियाँ भी हैं. जो इस बात का प्रतीक है, कि इस धर्म के कुछ शासकों ने सामूहिक रूप से बलपूर्वक धर्म परिवर्तन करवाया था. हिंदू और इस्लाम हमारी भारतीय संस्कृति में इस तरह रच बस गया है. कि दोनों के कुछ रीती रिवाजों की छाप एक दूसरे पर पड़ी हुई है. शिया और सुन्नी दो समुदायों में बटे हुए इस धर्म में कुछ रूढ़िवादी मुसलमान है. तो कुछ उदारवादी. यह धर्म शिक्षा संस्कृति के क्षेत्र में भी अपनी उन्नति की बाट जोह रहा है. इस धर्म में शिक्षा की उन्नति नहीं होना, राजनेताओं और मौलवियों को जिम्मेदार माना गया है.
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FAQs
Ans- सिद्धांतों में ईश्वर की एकता, भाईचारा रखना, स्त्रियों और गुलामों की मदद करना, दिन में 5 बार मक्का की ओर मुंह करके नमाज पढ़ना, शुक्रवार के दिन सामूहिक रूप से नमाज में भाग लेना, अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत हिस्सा दान देना, जीवन में एक बार हज मक्का मदीना जाना प्रमुख रूप से है.
Ans- कर्बला की लड़ाई में हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन शहीद हुए थे.