Biography of Haridev Joshi. राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा मेवाड़ का दक्षिणी भाग ‘बागड़’ नाम से भी जाना जाता है। इस बागड़ क्षेत्र की आबादी मुख्यत: भील तथा मीणों की है। यह वर्ग (भील तथा मीणा) समाज का सबसे पिछड़ा हुआ, सबसे निर्धन और शोषित वर्ग रहा है और आज भी इनकी स्थिति में कोई विशेष अन्तर नहीं आया है। आदिवासी के नाम से जाने वाले इन भील और मीणों का रहनुमा श्री हरिदेव जोशी का जन्म 17 दिसम्बर, 1921 को बांसवाड़ा के एक विद्वान भट्ट (ब्राह्मण) परिवार में हुआ था।
स्वतंत्रता सेनानी हरिदेव जोशी आजादी के संग्राम में कैसे कूदे?
आजादी से पहले डूंगरपुर राज्य की जनता का अधिसंख्या भाग (60%) भील लोग अशिक्षा और दरिद्रता से ग्रस्त निम्नतम जीवन स्तर पर जीवन यापन कर रहे थे। ऐसे पिछड़े लोगों के उत्थान के प्रयास करने के बजाय वहाँ की तत्कालीन रियासती सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा पाठशालाएँ तथा छात्रावास खोलने पर भी प्रतिबन्ध लगा रखे थे। स्थानीय रियासती प्रशासन से लोहा लेकर डूंगरपुर में ज्ञान की ज्योति जलाने वाले स्वतंत्रता आन्दोलन के सूत्रधार श्री भोगीलाल पण्ड्या के मुख्य सहयोगी श्री हरिदेव जोशी ने अपना कार्य क्षेत्र डूंगरपुर बनाया और अपनी युवावस्था के प्रारम्भिक चरण में ही राष्ट्र सेवा से जुड़ गये।
हरिदेव जोशी जी का आदिवासियों की शिक्षा में क्या योगदान है?
भोगीलाल पण्ड्या तथा श्री गौरीशंकर उपाध्याय से प्रेरणा पाकर श्री जोशी आदिवासी, हरिजन और पिछड़ी जाति के लोगों में शिक्षा का प्रचार करने हेतु निकल पड़े। एक उच्च ब्राह्मण कुल में उत्पन्न श्री जोशी ने अपनी जाति और समाज के नियम तथा बंधनों की परवाह नहीं करके इन पिछड़े और दरिद्र लोगों की सेवा को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। अर्द्ध-नग्न और असभ्य माने जाने वाले आदिवासियों को उनकी स्थिति का ज्ञान कराने तथा उन्हें सभ्य सुसंस्कृत बनाने के लिए आपने पहाड़ियों की टेकरियों पर पाठशालाएँ स्थापित कीं और शोषण मुक्त समाज की संरचना का आधार तैयार करने में जुट गये।
श्री जोशी ने समाज सुधार के कार्यों के साथ ही साथ राजनैतिक क्षेत्र में भी समान रूप से रुचि ली और आदिवासियों में राजनैतिक जाग्रति फैलाने का सतत प्रयास किया। आपने अखिल भारतीय देशी राज्य परिषद की सदस्यता स्वीकार की और वर्षों तक इसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते रहे। देशी राज्य प्रजा परिषद् की रीजनल कौंसिल के सदस्य के रूप में आपकी सेवाएँ अत्यन्त सराहनीय रहीं।
श्री हरिदेव जोशी जी आंदोलन और राजनीति में कैसे आये?
1942 से लेकर 1947 तक क्षेत्रीय राजनीति में पूर्णत: सक्रिय रहते हुए आपने विभिन्न जन आन्दोलनों में भाग लिया तथा आवश्यकतानुसार उनका नेतृत्व भी किया। क्षेत्र के नेताओं ने आन्दोलनों को गति देने और संगठन को मजबूत बनाने के लिए भी जोशी को सदैव ही जेल जाने से बचाये रखा तथापि 1946 में कटारा आन्दोलन में भाग लेने के अपराध में रियासती सरकार ने उन्हें देश निकाले की सजा दे दी। श्री भोगीलाल पण्ड्या के अनशन के कारण राज्य सरकार को झुकना पड़ा और उसने श्री जोशी के देश निकाले का आदेश वापस ले लिया । किन्तु श्री जोशी की धर्मपत्नी श्रीमती सुभद्रा जोशी को अन्य महिलाओं के साथ जेल की सजा भुगतनी पड़ी।
स्वतंत्रता प्राप्ति और राजस्थान के भारतसंघ में विलीनीकरण के पश्चात् 1949 में श्री जोशी कांग्रेस कमेटी तथा कांग्रेस महासमिति के सदस्य चुने गये। तदन्तर 1952 में वे विधानसभा के सदस्य चुने गये। तब से आज तक वे विधानसभा में बांसवाड़ा का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं।
राजस्थान का मुख्यमंत्री से विपक्ष के नेता तक का सफर
श्री हरिदेव जोशी 1952 से 1960 तक प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री, 1962 में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष, विधानसभा में कांग्रेस दल के मुख्य सचेतक, जनलेखा समिति के अध्यक्ष रहे। श्री सुखाड़िया तथा श्री बरकतुल्ला मंत्रीमण्डल में एक शक्तिशाली और कर्मठ मंत्री के रूप में श्री जोशी ने उद्योग, स्वास्थ्य एवं उप मुख्यमंत्री कार्यालय का कार्य सफलतापूर्वक संचालित किया। आप भी बरकतुल्लाखां के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री बने और अपने योग्य और कुशल निर्देशन में राज्य को प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाया।
जनता शासन के समय श्री जोशी ने राजस्थान विधानसभा में विरोधी दल के मुख्य वक्ता का कार्य पूर्ण जिम्मेदारी से निभाया। वर्तमान में श्री जोशी पुनः मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं तथा राजस्थान के नवनिर्माण के लिए जूझ रहे हैं। आशा है उनके नेतृत्व में राज्य का चहुँमुखी विकास होगा।
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FAQs
Ans- हरिदेव जोशी जी ने पहाड़ियों की टेकरियों पर पाठशालाएँ स्थापित कीं और शोषण मुक्त समाज की संरचना का आधार तैयार करने में जुट गये थे।