श्री गौरीशंकर उपाध्याय का जन्म 3 मई, 1910 को डूंगरपुर राजस्थान में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा डूंगरपुर में सम्पन्न हुई। तदनन्तर आपने हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य-आयुर्वेद विशारद की उपाधि प्राप्त की। साहित्यिक प्रतिभा के धनी श्री उपाध्याय ने एक दक्ष लेखक एवं विज्ञ व्यक्ति के रूप में क्षेत्र में अपने को प्रतिष्ठित किया।
मात्र 19 वर्ष की अल्प आयु में ही आपने राष्ट्र सेवा का व्रत ले लिया। खादी के प्रसार से राष्ट्रसेवा का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु आपने ‘सेवा-आश्रय’ नामक एक संस्था की स्थापना की और स्थान-स्थान पर वाचनालय खोले। इन्हीं दिनों आपने ‘सेवक’ नामक एक हस्तलिखित पत्र निकालना भी प्रारम्भ किया। अवसर पाकर ‘साबरमती आश्रम’ तथा ‘नारेली हरिजन आश्रम’ में प्रशिक्षण प्राप्त किया और अपने गृह जिला डूंगरपुर के एक मुख्य कस्बे सांगवाड़ा को केन्द्र बनाकर हरिजन उद्धार कार्यक्रम आरम्भ किया। श्री भोगीलाल पण्ड्या के सम्पर्क में आने पर श्री उपाध्याय ‘बागड़ सेवा मन्दिर’ के कार्यक्रमों द्वारा आदिवासी, हरिजनों एवं पिछड़े लोगों के उत्थान में जुट गये।
इस संस्था की बढ़ती हुई लोकप्रियता से रियासती सरकार चिन्तित हो उठी और उसने ‘बागड़ सेवा मन्दिर’ को गैर कानूनी घोषित कर दिया। जनसेवा का व्रत लेने वाले ऐसी छोटी-मोटी विपदाओं से भला कब घबराते हैं। श्री उपाध्याय और श्री पण्ड्या ने मिलकर ‘सेवा-संघ डूंगरपुर’ नामक एक नई संस्था बना ली और पुनः अपने कार्य में जुट गये।
स्वतंत्रता सेनानी गौरीशंकर उपाध्याय आजादी के संग्राम में कैसे कूदे?
दोस्तों जैसा आप जानते ही है, ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन (1942) के समय आपने गांधीजी के ‘करो या मरो’ के नारे का सारे डूंगरपुर राज्य में प्रचार किया। फलतः राज्य में चारों तरफ प्रदर्शनों तथा जलूसों की बाढ़ आ गई। श्री उपाध्याय ने प्रयाण सभाओं का आयोजन करके कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया। 26 जनवरी, 1944 को डूंगरपुर में ‘प्रजामण्डल’ का गठन हुआ और अप्रैल 46 में श्री उपाध्याय के प्रयासों से प्रजामण्डल के अधिवेशन का आयोजन हुआ। प्रजामण्डल का प्रभाव बढ़ता देख रियासती सरकार औछे हथकण्डों पर उतर आई।
श्री उपाध्याय को गलियाकोट के पास ‘नोरा नाले’ पर बुरी तरह पिटवाया और देश निकाला दे दिया। पुनः डूंगरपुर आने पर श्री उपाध्याय ने अपना राष्ट्रीय कार्यक्रम आरम्भ कर दिया। किन्तु ‘पुनावाड़ा काण्ड’ में फंसाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और मारपीट आदि यातनाएँ देकर जेल में बन्द कर दिया गया।
गौरीशंकर उपाध्याय जी 1949 में वे डूंगरपुर राज्य के मुख्यमंत्री कैसे बने?
देश की स्वतंत्रता के पश्चात् श्री उपाध्याय डूंगरपुर राज्य मंत्रीमण्डल में सम्मिलित हुए। 1949 में वे डूंगरपुर राज्य के मुख्यमंत्री बने। संयुक्त राजस्थान के भारतीय संघ में विलीनीकरण के पश्चात् श्री गौरीशंकर उपाध्याय डूंगरपुर जिला परिषद् के प्रमुख बनाये गये। उन्होंने दो बार इस पद पर सर्वसम्मति से निर्वाचित होकर क्षेत्र को अपनी सेवाओं से लाभान्वित किया।
स्वतंत्रता सेनानी गौरीशंकर उपाध्याय जी का अंतिम समय
श्री गौरीशंकर उपाध्याय जी बागड़ साहित्य परिषद, जिला वैद्य सभा, भारत सेवक समाज जैसी विभिन्न संस्थाओं के सक्रिय कार्यकर्त्ता तथा भूदान आन्दोलन के संयोजक भी रहे। वर्षों तक उन्होंने जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर कार्य किया और अपने अंतिम समय तक वे इसी पद पर कार्यरत थे। 9 नवम्बर, 1965 को बागड़ के इस सपूत का देहावसान हो गया। श्री उपाध्याय ने बागड़ की जनता को अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करने का हौंसला प्रदान किया। वे अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सैनानी थे।
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स्वतंत्रता सेनानी गौरीशंकर उपाध्याय
FAQs
Ans- स्वतंत्रता सेनानी गौरीशंकर उपाध्याय जी बागड़ साहित्य परिषद, जिला वैद्य सभा, भारत सेवक समाज जैसी विभिन्न संस्थाओं के सक्रिय कार्यकर्त्ता तथा भूदान आन्दोलन के संयोजक भी रहे थे.