महाराष्ट्र प्रान्त के जिन-जिन महान् विभूतियों ने सामाजिक सुधार के साथ-साथ नारी शिक्षा हेतु अपना सर्वस्व होम कर दिया, उनमें महर्षि कर्वे का नाम भी सर्वप्रमुख है. धोंडो केशव कर्वे देश के पहले जीवित व्यक्ति थे जिन पर डाक विभाग ने टिकट जारी किया था. तत्कालीन रूढिग्रस्त भारतीय समाज में नारी शिक्षा के माध्यम से जो चेतना तथा जागृति उत्पन्न की, वह उल्लेखनीय है. नारी जाति के उद्धार के रूप में महर्षि कर्वे का जो योगदान है, वह नि:सन्देह विशिष्ट है. विधवाओं की दशा में सुधार हेतु उन्होंने जो पहल की, वह भी उनकी महानता का ही उदाहरण है. महर्षि कर्वे एक पुरुष ही नहीं महापुरुष थे. हम यहाँ महर्षि कर्वे की जीवनी (Biography of Maharishi Karve), और उनकी वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में आप अबसे पहले अनजान थे.
हमारे देश में जिन व्यक्तियों को देश का सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न मिला है, उनमें से एक हैं, महर्षि कर्वे. स्त्री-शिक्षा और स्त्रियों की दशा सुधारने के क्षेत्र में उनका योगदान अनुपम है. अकेले अपने ही बलबूते पर उन्होंने एस.एन.टी.डी. महिला विश्वविद्यालय नामक एक अनूठी शिक्षा संस्था की स्थापना कर दिखाई.
महर्षि कर्वे की जीवनी, कर्वे का जीवन परिचय
स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह के प्रबल समर्थक महर्षि कर्वे का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण के अन्तर्गत रत्नागिरि जिला, में जन्म 18 अप्रॅल, 1858 को ‘मुरूड़’ नामक गांव में हुआ था. इनका जन्म एक एक निर्धन परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम धोंडो केशव कर्वे था, और वे अण्णा साहब कर्वे के नाम से भी जाने जाते थे. बचपन से ही उनकी पढ़ाई में बहुत रुचि थी. उनके पिता का नाम था केशोपंत और मां का लक्ष्मीबाई था. वे मुरुड़ नामक कस्बे में रहते थे. बालक कर्वे का जीवन कठिनाइयों में बीता, इसी कारण आगे चलकर वह कठिन परिस्थितियों में भी कभी नहीं घबराए. धोंडो केशव कर्वे का बचपन एक गरीब परिवार में बिता. उनके पिता रस्सी बुनाई का धन्धा कर जीवन बसर किया करते थे. इस निर्धन अवस्था में भी वे अपने बेटे को पढाना चाहते थे.
अण्णा साहेब के नाम से जाने जाने वाले महर्षि कर्वे जी की प्रारम्भिक शिक्षा अत्यन्त कठिनाइयों में हुई. घर पर रहकर परीक्षा की तैयारी करते और 120 कि॰मी॰ दूर परीक्षा देने के लिए जाया करते थे. इस तरह मरूढ़तापोल तथा रत्नागिरी तथा बम्बई के कॉलेज से उन्होंने 26 वर्ष की अवस्था में 1884 को BA की पढ़ाई पूरी की. BA करने के उपरान्त उनके पास आजीविका की समस्या आ खड़ी हुई थी.
अत: उन्होंने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा स्थापित पूना के फग्युर्सन कॉलेज में नाममात्र वेतन पर गणित पढ़ाना शुरू किया था. उस समय उनको केवल 75 रुपये मासिक वेतन मिलता था. महर्षि कर्वे इस सैलरी पर वे लगभग 25-30 वर्षो तक पढाते रहे. स्त्री शिक्षा, स्त्रियों की दशा में सुधार, विधवा विवाह व दलितों के प्रति उनके मन में कुछ करने की प्रबल इच्छा थी. और उसके अनुसार समाज सुधार के कार्य किये.
Summary
नाम | धोंडो केशव कर्वे |
उपनाम | अण्णा साहेब, महर्षि कर्वे |
जन्म स्थान | मुरूड़ गांव, रत्नागिरि जिला, महाराष्ट्र |
जन्म तारीख | 18-अप्रॅल-1858 |
वंश | कर्वे |
माता का नाम | लक्ष्मीबाई |
पिता का नाम | केशोपंत |
पत्नी का नाम | राधाबाई और आनन्दीबाई (गोड़बाई) |
उत्तराधिकारी | — |
भाई/बहन | — |
प्रसिद्धि | स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह के प्रबल समर्थक, भारत रत्न |
रचना | आत्मचरित |
पेशा | शिक्षक, समाज सुधारक |
पुत्र और पुत्री का नाम | — |
गुरु/शिक्षक | गोपालकृष्णन गोखले |
देश | भारत |
राज्य क्षेत्र | महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | मराठी, हिंदी |
मृत्यु | 09 नवम्बर 1962 |
मृत्यु स्थान | महाराष्ट्र |
जीवन काल | 104 वर्ष |
पोस्ट श्रेणी | Biography of Maharishi Karve (महर्षि कर्वे की जीवनी) |
महर्षि कर्वे जी की प्रारम्भिक शिक्षा में क्या कठिनाइयों आई?
महर्षि कर्वे जी की प्रारम्भिक शिक्षा अत्यन्त कठिनाइयों में हुई. घर पर रहकर परीक्षा की तैयारी करते और 120 कि॰मी॰ दूर परीक्षा देने के लिए जाया करते थे. कक्षा छह की परीक्षा देने के लिए वे अपने गाँव मुरुण्ड से 100 मील दूर सतारा गये; पर दुर्भाग्य से वे अनुत्तीर्ण हो गये. इस पर भी वे निराश नहीं हुए, उन्होंने अगली बार कोल्हापुर से यह परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुए. इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे मुम्बई आ गये. यहाँ उन्हें बहुत संघर्ष करना पड़ा. खर्च निकालने के लिए उन्हें ट्यूशन पढ़ाने पड़ते थे. उन्होंने 23 वर्ष की अवस्था में मैट्रिक तथा फिर एलफिन्स्टन कालिज से बी.ए. किया. इस तरह मरूढ़तापोल तथा रत्नागिरी तथा बम्बई के कॉलेज से उन्होंने 26 वर्ष की अवस्था में 1884 को BA की पढ़ाई पूरी की.
कर्वे विचार एवं प्रमुख कार्य
धोंडो केशव कर्वे देश के पहले जीवित व्यक्ति थे जिन पर डाक विभाग ने टिकट जारी किया था. धोंडो केशव कर्वे देश के पहले जीवित व्यक्ति थे जिन पर डाक विभाग ने टिकट जारी किया था. क्यों की कर्वे स्त्री शिक्षा, स्त्रियों की दशा में सुधार, विधवा विवाह व दलितों के प्रति उनके मन में कुछ करने की प्रबल इच्छा थी. महर्षि कर्वे रत्री को समाज का महत्त्वपूर्ण अंग मानते थे. स्त्री शिक्षा की उपेक्षा के साथ-साथ उनकी दुर्दशा देखकर वे काफी चिन्तित रहा करते थे. 26 वर्ष की छोटी आयु में उनकी पत्नी जब दो बच्चों को छोड्कर चली गयीं, तो वे अत्यन्त दुखी हो गये थे. क्योंकि उनकी पत्नी की असामयिक मृत्यु का कारण अल्पायु में विवाह एवं कम अवस्था में मातृत्व का बोझा न सह पाना ही था.
महर्षि कर्वे ने समाज में क्या जाग्रति लाये?
अत: उन्होंने विवाह हेतु स्त्रियों की आयु को बढ़ाने हेतु लोगों में जागृति लाने का कार्य भी किया था. अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद उनके घरवालों ने उन्हें पुनर्विवाह हेतु प्रेरित किया. अत: उस समय के प्रबल सामाजिक व पारिवारिक परस्पर विरोध को सहते हुए भी उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था. विधवा आनन्दीबाई नामक महिला को लेकर जब वे घर पहुंचे थे. तो उन्हें न छूने योग्य मानकर घरवालों ने गोठान (गाय का रहने का स्थान) में ठहराया था. इस बात से महर्षि कर्वे ने विधवा विवाह हेतु जागृति लाने का कार्य जोर-शोर से शुरू कर दिया. अनाथ तथा बालविवाह का दु:ख भोग रही कन्याओं के लिए उन्होंने हिंगण नामक स्थान में आश्रमों की स्थापना की, जहां शिक्षा के साथ-साथ उन्हें साधारण घरेलू धन्धों हेतु प्रशिक्षण दिया जाने लगा.
वहां से प्राप्त आमदनी को इसी आश्रम के संचालन में लगाया जाता था. कालान्तर में इस आश्रम को एक अनाथ विधवा आश्रम तथा कन्या आश्रम में विभाजित कर दिया गया. धोंडो केशव कर्वे इस विचार और कार्यो के लिए उन्हें समाज में काफी आलोचनाओं विरोधों तथा अपमान का सामना करना पड़ा था.
स्त्री शिक्षा, स्त्रियों की दशा में सुधार, विधवा विवाह व दलितों के उथान में महर्षि कर्वे जी का क्या योगदान था?
महर्षि कर्वे ने घर-घर जाकर तथा विभिन्न सभाओं में स्त्री शिक्षा के महत्त्व पर अपने जरी विचार व्यक्त किये. जिसका परिणाम स्वरूप यह हुआ कि लोग अपनी लड़कियों को विद्यालय में पढ़ने हेतु भेजने लगे. स्त्री शिक्षा हेतु जागृति तो आयी, पर आमदनी के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी 75 रुपये का नियमित वेतन, 5 हजार की बीमा पॉलिसी आश्रमों के लिए दान कर दी थी. उनके इस महान सराहनीय कार्य को देखते हुए कुछ सम्पन्न लोगों ने आर्थिक दान देने की घोषणा की. पुणे के एक समाजसेवक श्री नानजी ठाकरासी ने तो एकमुश्त 10 लाख रुपये का अनुदान दिया.
जिसके कारण उन्होंने बालिका शिक्षा की जो पहल की, वह भी उनकी महानता का ही उदाहरण है. महर्षि कर्वे एक महान पुरुष ही नहीं बल्कि महा पुरुष थे. महिला शिक्षा के लिए कर्वे जी ने अनेक विद्यालय तथा महिला विद्यालय की स्थापना की थी. इस तरह उन्होंने देश तथा विश्व-भर में भ्रमण यात्राएं करके इस दिशा में कार्य करने हेतु धन एकत्र किया और इससे बालिका विद्यालय एवं महिला महाविद्यालय की स्थापना की, जहां मातृभाषा की शिक्षा को अनिवार्य किया.
धोंडो केशव कर्वे अथार्थ महर्षि कर्वे का अंतिम समय और भारत रत्न
महर्षि कर्वे देश तथा विश्व-भर में भ्रमण यात्राएं करके इस दिशा में कार्य करने हेतु धन एकत्र किया और इससे बालिका विद्यालय एवं महिला महाविद्यालय की स्थापना की, जहां मातृभाषा की शिक्षा को अनिवार्य किया. इस तरह 104 वर्ष की दीर्घायु प्राप्त कर November 9, 1962 इस संसार विधा हुए, महर्षि कर्वे अपना नाम अमर कर गये. अपने महान् कार्यो के कारण ही वे आणासाहेब से महर्षि कर्वे के रूप में प्रतिष्ठित हुए. भारत सरकार द्वारा उन्हें 1958 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.
महान साधु संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
भारत के प्रमुख युद्ध
भारत के राज्य और उनका इतिहास और पर्यटन स्थल
1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी और रोचक जानकारी
Youtube Videos Links
FAQs
Ans- महर्षि कर्वे को भारत रत्न 1958 में मिला था.
Ans- महर्षि कर्वे ने मराठी भाषा में एक पुस्तक की रचना की थी जिसका नाम था आत्मचरित.
Ans- महर्षि कर्वे स्त्री-शिक्षा और स्त्रियों की दशा सुधारने के क्षेत्र में उनका योगदान अनुपम है. अकेले अपने ही बलबूते पर उन्होंने एस.एन.टी.डी. महिला विश्वविद्यालय नामक एक अनूठी शिक्षा संस्था की स्थापना कर दिखाई.