Biography of Pandit Madan Mohan Malviya | मदन मोहन मालवीय

By | September 26, 2023
Biography of Pandit Madan Mohan Malviya
Biography of Pandit Madan Mohan Malviya

Biography of Pandit Madan Mohan Malviya. पं. मदन मोहन मालवीय बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। इनका जन्म इलाहाबाद के एक गौड़ ब्राह्मण परिवार में 25 दिसम्बर, 1861 को हुआ था। मूल रूप से यह परिवार मालवा निवासी था और इलाहाबाद में मल्लई परिवार के नाम से प्रसिद्ध था। पं. मदन मोहन जी ने आगे चलकर मल्लई के स्थान पर मालवीय कर लिया था। इनके पिता पं. ब्रजनाथ व्यास बड़े धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे और कथा वार्ता से जीवन निर्वाह करते थे। इनकी मां श्रीमती मूना देवी बहुत सरल एवं उदार प्रवृत्ति की महिला थीं। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न न होने के बाद भी ये दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहती थीं। बालक मदन मोहन पर अपने माता-पिता का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। आगे चलकर पं. मदन मोहन मालवीय जो कुछ भी बने उसकी नींव बचपन में ही पड़ चुकी थी।

Summary

NamePandit Madan Mohan Malviya
NicknameMulshankar Tiwari, Swami
BirthplacePrayagraj, Uttar Pradesh
Date of birth25 December 1861
LineageGaur Brahmin
Mother’s nameMoona Devi
Father’s namePandit Brijnath
Wife’s name
AwardBharat Ratna
Son and daughter name
CompositionBanaras University, Calcutta University
ProfessionHindu Mahasabha Party
Author
CountryIndia
State territoryUttar Pradesh
ReligionHindu
The nationalityIndian
LanguageSanskrit, Hindi, Urdu, English, Arbi
Death12 November 1946
Death PlacesVaranasi
Life span85 Years
Post categoryBiography of Pandit Madan Mohan Malviya
Biography of Pandit Madan Mohan Malviya

पं. मदन मोहन मालवीय जी की शिक्षा

मदन मोहन जी की शिक्षा का आरम्भ इनके अपने घर में ही हुआ। विद्यालय में प्रवेश लेने से पूर्व ही इन्हें हिन्दी और संस्कृत भाषा का ज्ञान करा दिया गया था। ये बहुत तीक्ष्ण बुद्धि के बालक थे, इन्होंने देखते ही देखते संस्कृत के अनेक श्लोक याद कर लिए थे। कुछ बड़ा होने पर इन्हें पं. हरदेव जी की धर्म ज्ञानोपदेश’ पाठशाला में प्रवेश कराया गया। यहां इन्होंने संस्कृत और धर्म की शिक्षा का अध्ययन किया। दो वर्ष बाद इन्हें पं. देवकी नन्दन जी की पाठशाला में प्रवेश कराया गया। पं. देवकी नन्दन इनकी प्रतिभा से बहुत आकर्षित हुए। जब ये केवल सात वर्ष के थे, पं. देवकी नन्दन ने इन्हें भाषण देने का अभ्यास कराना शुरू कर दिया था।

उस समय देश पर अंग्रेजों का शासन था और देश में अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग उच्च श्रेणी में आते थे यूं मालवीय जी आरम्भ से ही हिन्दी और संस्कृत भाषा के प्रेमी थे किन्तु समयानुकूल इन्हें अंग्रेजी पढ़ने की इच्छा हुई। इनके पिता ने निर्धन होते हुए भी इन्हें इलाहाबाद जिला स्कूल, जो आगे चलकर गवर्नमेन्ट हाई स्कूल हुआ, उसमें प्रवेश करा दिया। मदन मोहन जी पढ़ने में तो तेज थे ही, साथ ही खेल-कूद और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्रियाओं में भी बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। इनके हेडमास्टर मि. गार्डन इनकी वाक्पटुता बहुत आकर्षित थे और इन्हें हर प्रकार से सहयोग प्रदान करते थे। मदन मोहन जी ने इस विद्यालय से 1879 में हाई सकल की परीक्षा पास की हाई स्कूल पास करने के बाद इन्हें इलाहाबाद के ‘म्योर सेन्ट्रल कॉलिज’ में प्रवेश कराया गया। इस कॉलिज में भी इन्होंने पढ़ने-लिखने के साथ-साथ सहपाठ्यचारी क्रियाओं में भाग लिया।

Biography of Pandit Madan Mohan Malviya

यहां के प्राचार्य मि. हैरिसन भी उनसे बहुत प्रभावित हुए। इस कॉलेज के संस्कृत प्राध्यापक पं. आदित्य राय भट्टाचार्य का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा। अपने छात्र जीवन में 1880 में इन्होंने ‘हिन्दू समाज’ की स्थापना की और इसके माध्यम से समाज सुधार के कार्य आरम्भ किए। 1881 में इन्होंने इण्टर की परीक्षा पास की इसी वर्ष इनका विवाह कर दिया गया। पर इन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1884 में बी. ए. की परीक्षा पास की। धनाभाव के कारण ये आगे नहीं पढ़ सके और इलाहाबाद के राजकीय हाई स्कूल में अध्यापक हो गए। यहां इन्होंने अपने नाम के आगे मालवीय जोड़ दिया और अब ये मालवीय जी के नाम से जाने-पहचाने जाने लगे।

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मध्य हिन्दू समाज की स्थापना पं. मदन मोहन मालवीय जी ने कब की थी?

मालवीय जी एक आदर्श अध्यापक थे, इनके शिष्य इनका बड़ा आदर करते थे। समाज में भी इनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। सन् 1884 में इन्होंने हिन्दू समाज को एकत्रित करने और हिन्दू धर्म को एक बार फिर प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से इलाहाबाद में ‘मध्य हिन्दू समाज’ की स्थापना की। इसके स्थापना दिवस पर इन्होंने समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को आमन्त्रित किया और उनमें समाज सुधार और धर्म रक्षा का मंत्र फूंका। इसी वर्ष इन्होंने ‘इन्डियन यूनियन’ नामक पत्र का सम्पादन शुरू किया और यह कार्य 1887 तक करते रहे।

1886 में ये अपने संस्कृत प्राध्यापक पं. आदित्य राय भट्टाचार्य के साथ अखिल भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने कलकत्ते पहुंचे। इस अधिवेशन में मालवीय जी ने विद्वतापूर्ण भाषण दिया। इन्होंने इस मंच पर हिन्दू और हिन्दुस्तान की आवाज उठाई और सनातन धर्म की रक्षा पर जोर दिया। अधिवेशन की समाप्ति पर दादा भाई नौरोजी और अन्य कांग्रेसी नेता इनके भाषण से बहुत प्रभावित हुए। काला कांकर नरेश राजा रामपाल सिंह तो इनसे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने कुछ महीने पश्चात ही इन्हें हिन्दुस्तान के सर्वप्रथम हिन्दी दैनिक पत्र ‘हिन्दुस्तान’ का सम्पादक बनाकर काला कांकर बुला लिया।

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इस कार्य भार को सम्भालने से पहले इन्होंने राजा साहब के सामने दो मुख्य शर्ते रखी थीं एक यह कि राजा साहब उनके सम्पादन कार्य में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे और दूसरी यह कि मदिरापान के बाद वे उनसे सम्पर्क नहीं करेंगे। राजा साहब ने इनकी दोनों शर्तें स्वीकार की थीं। 1887 में मालवीय जी ने अध्यापन कार्य छोड़कर ‘हिन्दुस्तान’ दैनिक पत्र का सम्पादन कार्य सम्भाला। यह कार्य इन्होंने बड़ी ईमानदारी और निर्भीकता के साथ किया। पर इस सम्पादन कार्य में भी इनका मन नहीं लगा और 1889 में यह कार्य छोड़कर वकालत की शिक्षा ग्रहण करने चले गए। 1891 में इन्होंने वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके बाद 2 वर्ष की ट्रेनिंग पूरी की। 1893 से ये इलाहाबाद हाई कोर्ट में अभ्यास करने लगे।

इस कार्य में इन्हें अच्छी सफलता मिली। पर इनके जीवन का मूल उद्देश्य तो हिन्दू जाति और हिन्दू धर्म की रक्षा करना था अत: चाहे सामाजिक मंच हो, चाहे राजनैतिक, चाहे साहित्यिक मंच हो चाहे धार्मिक, ये सभी मंचों से समाज सुधार, धर्म रक्षा और राजनैतिक जागरण के लिए प्रयासरत हुए। इनका स्पष्ट मत था कि ये सब कार्य उचित शिक्षा द्वारा ही सम्भव है अतः ये शैक्षिक सुधारों के लिए भी प्रयासरत हुए।

पं. मदन मोहन मालवीय जी द्वारा भारत की शिक्षा में क्या योगदान था?

मालवीय जी जानते थे कि किसी भी प्रकार के सुधार के लिए शिक्षा पहली जरूरत है। इसलिए इन्होंने प्रारम्भ से ही शिक्षा संस्थाओं की स्थापना में रुचि ली। किन्तु अब इनके सामने एक बड़ा स्वप्न था, एक ऐसे विश्वविद्यालय की स्थापना का जो भारतीय संस्कृति को सुरक्षित रख सके। संस्कृत भाषा का प्रचार करें, सनातन धर्म की रक्षा करे और साथ ही भारतीय नागरिकों को पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान से परिचित कराए। अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मालवीय जी ने 4 फरवरी, 1916 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव डाली। मालवीय जी ने देश भर के लोगों से चन्दा मांगना शुरू किया और इसके निर्माण कार्य में जुट गए। 1919 से 1939 तक ये इसके कुलपति रहे और इसके बाद इसके डायरेक्टर बन गए और जीवन के अन्तिम समय तक इसकी व्यवस्था एवं विकास से जुड़े रहे।

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FAQs

Q- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव किसने डाली थी?

Ans- पं. मदन मोहन मालवीय जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव रखी थी.

Q- पंडित मदन मोहन मालवीय जी पर कहाँ के राजा ने जूती फेंकी थी?

Ans- हैदराबाद के निजाम ने पंडित मदन मोहन मालवीय पर अपनी जूती फेक कर मारी थी उसको बोली लगा कर पैसा इकठा किया था.

भारत की संस्कृति

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