Biography Of Swami Vivekananda | स्वामी विवेकानंद

By | September 26, 2023
Biography Of Swami Vivekananda
Biography Of Swami Vivekananda

Biography Of Swami Vivekananda. स्वामी विवेकानन्द का जन्म कलकत्ता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इनका मूल नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ते के उच्च न्यायालय में एटर्नी (वकील) थे। वे बड़े बुद्धिमान, ज्ञानी, उदारमना, परोपकारी एवं गरीबी की रक्षा करने वाले थे। स्वामी जी की मां श्रीमती भुवनेश्वर देवी भी बड़ी बुद्धिमती, गुणवती, धर्मपरायण एवं परोपकारी थीं। स्वामी जी पर इनका अमिट प्रभाव पड़ा। ये बचपन से ही पूजा-पाठ में रुचि लेते थे और ध्यानमग्न हो जाते थे। इनकी इसी प्रवृत्ति ने आगे चलकर इन्हें नरेन्द्रनाथ से स्वामी विवेकानन्द बना दिया।

Summary

NameNarendranath Dutt
NicknameSwami Vivekananda, Narendra, and Naren
BirthplaceKolkata, West Bengal
Date of birth12 January 1863, Kolkata
LineageBengali
Mother’s nameBhuvaneshwari Devi
Father’s nameVishwanath Dutt
Wife’s name
GuruRamakrishna
Brother NameBhupendranath Datta
CompositionVedanta Society, Advaita Ashram, Shanti Ashram
ProfessionDharma Guru
AuthorRaja Yoga, Karma Yoga, Bhakti Yoga, My Guru [My Master], all lectures given from Almora to Colombo
FounderRamakrishna Mission and Ramakrishna Math
CountryIndia
State territoryWest Bangal
ReligionHindu
The nationalityIndian
LanguageSanskrit, Hindi, Urdu, English, Arbi
Death4 July 1902, Belur Math,
Death PlacesBelur Math
Life span39 Years
Post categoryBiography Of Swami Vivekananda
Biography Of Swami Vivekananda

स्वामी विवेकानन्द जी की शिक्षा

नरेन्द्रनाथ की शिक्षा का प्रारम्भ इनके अपने घर से ही हुआ। ये बड़े कुशाग्र बुद्धि और चंचल स्वभाव के बालक थे। सात वर्ष की आयु तक इन्होंने पूरा व्याकरण कंठस्थ कर डाला था। सात वर्ष की आयु में इन्हें मेट्रोपोलिटन कॉलेज में प्रवेश दिलाया गया। इस विद्यालय में इन्होंने पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेल-कूद, व्यायाम, संगीत और नाटक में रुचि ली और इन सभी क्षेत्रों में ये आगे रहे। 16 वर्ष की आयु में इन्होंने मेट्रीकुलेशन (हाईस्कूल) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इन्होंने प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया और उसके बाद जनरल एसेम्बलीज इन्स्टीट्यूशन में पढ़ने लगे।

इस समय इन्होंने कॉलेज के पाठ्य विषयों के शिक्षा के साथ-साथ साहित्य, दर्शन और धर्म का भी अध्ययन किया। इस क्षेत्र में इन्हें अपने माता-पिता और अध्यापकों से बड़ा योगदान मिला। अध्ययनशील नरेन्द्रनाथ दत्त का जीवन बड़ा संयमी था ये ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और प्रार्थना, उपासना और ध्यान में मग्न रहते थे। ज्ञान के प्रकाश और आध्यात्मिक तेज से गौर वर्ग के सुन्दर युवक का चेहरा और अधिक प्रदीप्त हो उठा था। नवम्बर, 1881 में इन्हें कलकत्ता में ही स्थित दक्षिणेश्वर के मन्दिर में जाने और श्री रामकृष्ण परमहंस के दर्शन करने का सौभाग्य मिला।

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परमहंस इनकी आभा से आकर्षित हुए, पर एफ. ए. (इण्टर) की परीक्षा की तैयारी में लग जाने के कारण नरेन्द्र नाथ बहुत दिनों तक उनके पास न जा पाए। नरेन्द्र नाथ ने एफ. ए. पास कर बी. ए. में प्रवेश लिया। इस बीच उन्होंने परमहंस का सत्संग किया। इस सत्संग का यह प्रभाव हुआ कि नरेन्द्र नाथ गृहस्थ जीवन में नहीं बंधे। 1886 में श्री परमहंस का भी महाप्रस्थान हो गया। महाप्रस्थान करने से तीन दिन पूर्व परमहंस ने नरेन्द्रनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए कहा था- ‘आज अपना सब तुम्हें देकर मैं रंक बन गया हूं। मैंने योग द्वारा जिस शक्ति को तुम्हारे अन्दर प्रविष्ट किया है, उससे तुम अपने जीवन में महान कार्य करोगे। अपने इस कार्य को पूर्ण करने के बाद ही तुम वहां जाओगे जहां से आए हो।

स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा परमहंस रामकृष्ण की शिक्षाओं का प्रचार

गुरु के महाप्रस्थान के बाद ये उनकी शिक्षाओं के प्रचार एवं प्रसार कार्य में जुट गए। पहले वर्ष इनका कार्य क्षेत्र कलकता ही रहा। इसके बाद 1888 में ये परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े। ये काशी, अयोध्या, लखनऊ, आगरा, मथुरा, वृन्दावन और हाथरस होते हुए हिमालय पहुंचे। इस यात्रा में ये प्रायः पैदल ही चले और परमहंस रामकृष्ण की शिक्षाओं का प्रचार एवं प्रसार करते रहे। 1891 में इन्होंने राजस्थान की यात्रा की और 1892 में दक्षिण भारत की यात्रा की इस यात्रा में इन्होंने भारत की नंगी तस्वीर देखी और उसकी आत्मिक एकता की एहसास किया। दक्षिण भारत की यात्रा के अन्तिम चरण में ये कन्याकुमारी पहुंचे। यहां के मन्दिर में इन्होंने देवी के दर्शन किए और फिर समुद्र में कूदकर तैरते हुए एक पास की चट्टान पर जा पहुंचे और वहां तपस्या में समाधिस्थ हो गए।

यहां इन्हें एक दिव्य का आभास हुआ यहां इन्होंने देश सेवा, दीन-हीन, दलित और उपेक्षित भारतीय जनता के कल्याण का व्रत लिया। यहां से ये मद्रास पहुंचे। मद्रास में इन्होंने कई स्थानों पर वेदान्त पर विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान दिए। यहां के लोग इनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इन्हें अमरीका में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भेजने के लिए रास्ते का खर्च इकट्ठा किया। उनके आग्रह पर इन्होंने अमरीका जाना | कुबूल किया। अमरीका जाने से पहले इन्होंने अपना नाम विवेकानन्द रखा और सितम्बर, 1899 में इन्होंने इस सम्मेलन में भाग लिया। यहां इन्होंने संसार को भारतीय धर्म और दर्शन से परिचित कराया।

Biography Of Swami Vivekananda

विश्व के विद्वान इनकी विद्वत्ता से प्रभावित हुए। अमरीकी जन समूह इनके पीछे भागने लगा। अनुकूल परिस्थितियां पाकर ये तीन वर्ष अमरीका रुके और यहां इन्होंने वेदान्त का विकास किया। इस बीच इनकी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ। 1897 में ये इंग्लैण्ड गए और अनेक स्थानों पर भाषण दिए और वेदान्त का विकास किया। इंग्लैण्ड से इटली, स्विट्जरलैण्ड, जर्मनी और फ्रान्स गए और इन देशों में वेदान्त पर भाषण दिए। यहां से ये पुनः इंग्लैण्ड गए और वहां वेदान्त का प्रचार किया।

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रामकृष्ण मिशन की स्थापना

इंग्लैण्ड से भारत लौटकर इन्होंने ‘रामकृष्ण मिशन’ की नींव रखी, जिसका उद्देश्य न केवल वेदान्त का प्रचार था, अपितु गरीबों की सेवा के लिए शिक्षा संस्थाएं और चिकित्सालय खोलना भी था। स्वामी जी चाहते थे कि इनके अनुयायी गांव-गांव जाकर शिक्षा का प्रचार करें और अज्ञान के अन्धकार को दूर करें। इसी समय इन्होंने कलकत्ता स्थित बेल्लूर में एक मठ का निर्माण कराया जो 1899 के आरम्भ से रामकृष्ण के अनुयायियों का स्थायी केन्द्र बन गया। कुछ ही दिनों पश्चात हिमालय में अल्मोड़े से 75 किमी. की दूरी पर अद्वैत आश्रम के नाम से एक दूसरे मठ का निर्माण हुआ। इन कार्यों से निवृत्त होकर स्वामी जी 1899 में पुनः अमरीका गए। ये वहां लगभग एक साल तक रहे और राजयोग तथा साधना की शिक्षा देते रहे।

1900 में स्वामी जी अमरीका से फ्रान्स पहुंचे। यहां इन्होंने ‘पेरिस विश्व धर्म इतिहास सम्मेलन’ में हिस्सा लिया। फ्रान्स से ये इटली और ग्रीस होते हुए उसी साल भारत लौट आए। अब ये कुछ बीमार रहने लगे। बीमार रहते हुए भी ये धर्म प्रचार, समाज सेवा और जन जागरण के कार्यों में लगे रहे। 1887 से 1901 के बीच स्वामी जी ने अनेक ग्रन्थों की रचना भी की। इनमें ज्ञान योग, कर्मयोग, भक्तियोग, राज योग, प्रेम योग, धर्म विज्ञान, हिन्दू धर्म, व्यावहारिक जीवन में वेदान्त, प्राच्य और पाश्चात्य, मेरे गुरुदेव, धर्म रहस्य, हमारा भारत, वर्तमान भारत और शिक्षा मुख्य हैं। अब इनके पूरे साहित्य और मुख्य भाषणों को विवेकानन्द ‘साहित्य’ के नाम से दस खण्डों में प्रकाशित किया गया है। पर विधि का विधान ! इस युग पुरुष ने 39 वर्ष की अल्प आयु में ही 4 जुलाई, 1902 को, मोक्ष को प्राप्त किया।

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FAQs

Q- स्वामी विवेकानंद जी द्वारा लिखित ग्रंथो के क्या नाम है?

Ans- स्वामी विवेकानंद जी द्वारा लिखित ग्रंथो में ज्ञान योग, कर्मयोग, भक्तियोग, राज योग, प्रेम योग, धर्म विज्ञान, हिन्दू धर्म, व्यावहारिक जीवन में वेदान्त, प्राच्य और पाश्चात्य, मेरे गुरुदेव, धर्म रहस्य, हमारा भारत, वर्तमान भारत और शिक्षा मुख्य हैं.

Q- स्वामी विवेकानंद जी का बचपन का क्या नाम था?

Ans- स्वामी विवेकानंद जी का बचपन का नाम नरेंद्र था.

भारत की संस्कृति

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