Biography of Amar Shaheed Balmukund Bissa- बंगाल के क्रान्तिकारी वातावरण में शिक्षित बालमुकुन्द बिस्सा ने राजस्थान चरखा एजेन्सी लेकर जोधपुर में खादी भण्डार की स्थापना की थी। वे 6 वर्ष तक निरन्तर खादी चरखा और कताई-बुनाई के रचनात्मक कार्य करते रहे। तदनन्तर उन्होंने जवाहर खादी भण्डार नामक एक अन्य दकान शुरू कर दी। उनकी यह दुकान राजनैतिक प्रवृत्तियों का केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध रही। विभिन्न आन्दोलनों के समय श्री बिस्सा जेल से बाहर रहकर आन्दोलन के संचालन एवं व्यवस्था सम्बन्धी दायित्वों का निर्वाह करते थे लोक नायक श्री व्यास के नेतृत्व में जोधपुर में चल रहे लोक आन्दोलन के समय श्री बिस्सा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।
वहाँ उन्होंने राजनैतिक बन्दियों के साथ दुर्व्यवहार के विरोध में एक सप्ताह तक अपने साथियों के साथ भूख हड़ताल की। बालमुकुन्द का स्वास्थ्य बहुत कमजोर हो गया और वे बीमार हो गए। कैदियों द्वारा उनकी चिकित्सा के लिए माँग करने पर भी जेल अधिकारियों ने कोई व्यवस्था नहीं की। फलतः उनका स्वास्थ्य खराब होता चला गया।
राजस्थान के जिलों का इतिहास और पर्यटक स्थल और रोचक जानकारी
Biography of Amar Shaheed Balmukund Bissa
राजस्थान राज्य के नागौर जिले के डीडवाना के पीलवा गांव में जन्में बालमुकुंद बिस्सा (Balmukund Bissa) एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका जन्म 24 दिसंबर 1908 को हुआ था. बिस्सा का संबंध पुष्करणा ब्राह्मण समाज से था. उनके पिता, कोलकाता में व्यापार करते थे. लिहाजा पूरा परिवार वहीं पर रहता है. बालमुकुंद बिस्सा की पढ़ाई भी कोलकाता में ही हुई थी. साल 1934 में वे कोलकाता से जोधपुर लौटे, और यहीं पर व्यापार करना शुरू कर दिया.
अमर शहीद बालमुकुंद बिस्सा का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
सन 1942 में मारवाड़ में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में जन आंदोलन चल रहा था. बालमुकुंद बिस्सा ने इस आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. तब देश में आजादी की लड़ाई आखिरी मोड़ पर थी. अंग्रेज सरकार ने बढ़ते आंदोलन को दबाने के लिए 9 जून 1942 को ‘भारत रक्षा कानून’ के तहत बालमुकुंद बिस्सा को जेल में डाल दिया. वे लंबे समय तक जोधपुर की जेल में बंद रहे. इस दौरान उन्होंने कैदियों को मिलने वाले खराब भोजन के खिलाफ जेल में ही गांधीवादी तरीके से भूख हड़ताल शुरू कर दी थी.
जेल में श्री बालमुकुन्द बिस्सा की हालत जब बहुत खराब हो गई तो डॉक्टर के निर्देशानुसार उन्हें पुलिस के पैहरे में जोधपुर के सार्वजनिक अस्पताल में उपचार के लिए ले जाया गया। जहाँ उसी दिन उनकी मृत्यु हो गई। श्री बिस्सा की मृत्यु के समाचार सुनकर सारा शहर उनके शव के अंतिम दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ा। नगर के गणमान्य नागरिकों ने यह निश्चय किया कि बिस्सा की शव यात्रा शहर के बाजारों से निकाली जाये। राज्य सरकार ने प्राचीन परम्पराओं (अर्थी को बाहर से शहर में नहीं लाये) का पालन करने की आड़ में यह आदेश प्रसारित कर दिया कि बिस्सा की शव यात्रा शहर से होकर शमशान नहीं ले जाई जा सकती।
शव यात्रा में भाग लेने आये हजारों नर-नारी जालौरी गेट से शहर में प्रविष्ट होना चाहते थे। राज्याधिकारियों ने शहर का जालौरी गेट बन्द करवा दिया और शहर में घुसने के मार्ग में पुलिस और सेना लगा दी। शहर के सभी रास्ते बन्द होने के कारण शव यात्रा को लगभग पाँच मील लम्बे पहाड़ी रास्ते को पार करके शमशान पहुँचना पड़ा। राजस्थान में ऐसी ऐतिहासिक शव यात्रा का अन्य उदाहरण नहीं मिलता।
Amar Shaheed Balmukund Bissa का अंतिम समय और बलिदान
दोस्तों आपको जानकर ताजुब होगा, शहादत के समय श्री बालमुकुन्द बिस्सा की उम्र 34 वर्ष की थी। उनका जन्म 1908 में जोधपुर की डिड़वाना तहसील में पीपला ग्राम के एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। श्री बालमुकुन्द बिस्सा कभी भाषण देने के लिए मंच पर नहीं गए और न ही वे कोई बहुत बड़े नेता थे। किन्तु कोई सी भी मिटिंग समारोह या सम्मेलन हो, व्यवस्था का सारा ही काम वे ही किया करते थे।
राजनीति में उनका सम्बन्ध खादी और रचनात्मक कार्यों से ही था। सन 1942 जून महीने में देश के लिए शहीद हो गए. श्री बालमुकुन्द बिस्सामहीने में जोधपुर के जैन मानस में उनके प्रति अपार श्रद्धा और आदर की भावना थी। जालोरी गेट के बाहर बिस्सा पार्क में उनकी एक संगमरमर की मूर्ति आज भी लगी हुई है। दोस्तों प्रति वर्ष 19 जून को नगर के नर-नारी श्री बालमुकुन्द बिस्सा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
भारत के महान साधु संतों की जीवनी और रोचक जानकारी
1857 ईस्वी क्रांति और उसके महान वीरों की जीवनी
भारत के प्रमुख युद्ध
भारत के राज्य उनका इतिहास और घूमने लायक जगह
FAQs
Ans- बालमुकुंद बिस्सा जी भारत के राजस्थान के स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका जन्म 24 दिसंबर 1908 को नागौर में डीडवाना के पीलवा गांव में हुआ था. बिस्सा का संबंध पुष्करणा ब्राह्मण समाज से था. उनके पिता, कोलकाता में व्यापार करते थे. लिहाजा पूरा परिवार वहीं पर रहता है. बालमुकुंद बिस्सा की पढ़ाई भी कोलकाता में ही हुई थी. साल 1934 में वे कोलकाता से जोधपुर लौटे, और यहीं पर व्यापार करना शुरू कर दिया.