Biography of Amar Shaheed Birbal Singh Dhalia- गंगानगर जिले के रामसिंह नगर के रेस्ट हाउस में बैठे सरकारी अधिकारी जोश में भरी जनता को आगे बढ़ते देख घबरा उठे। नौजवान बीरबल सिंह एक हाथ में तिरंगा झण्डा लिये जुलूस का नेतृत्व करता आगे बढ़ रहा था। अधिकारियों की सुरक्षा के लिए फौजियों ने बगैर चेतावनी दिये ही अन्धाधुन्ध गोली चलाना शुरू कर दिया। भारत माता की जय ! इन्कलाब जिन्दाबाद ! के नारे लगाते हुए बीरबल सिंह आगे बढ़ते जा रहे थे। सैनिक मोर्चा बन्दी करके जमे हुए थे और उनकी बन्दूकें आग उगल रही थी। झण्डा ऊंचा रहे हमारा, वन्दे मातरम् ! कांग्रेस जिन्दाबाद ! बोलते हुए आगे बढ़ रहे बीरबल सिंह की जाँघ में तीन गोलियाँ लगीं। कुछ कदम आगे बढ़कर वह जमीन पर गिर पड़ा।
बीरबल सिंह कौन थे?
श्री वीरबल सिंह रायसिंह नगर के एक जिनगर परिवार में 1 जुलाई, 1946 में पैदा हुए थे। इनका रुई की आड़त का व्यवसाय था। हृष्ट-पुष्ट पहलवान से दिखाई देने वाले वीरबल सिंह बीकानेर में प्रजा परिषद् के सक्रिय सदस्य थे तथा जन-अधिकारों की रक्षा के लिए हर आन्दोलन में आगे रहते थे।
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अमर शहीद बीरबल सिंह का स्वतंत्रता संग्राम में क्या योगदान था?
दोस्तों! यह घटना उस समय की है, जब रायसिंह नगर में ‘बीकानेर प्रजा परिषद्’ का राजनैतिक सम्मेलन बुलाया गया था। गंगानगर तथा अन्य कई स्थानों से हजारों लोग तिरंगा झण्डा लिये रायसिंह नगर आये थे। श्री सर्राफ की अध्यक्षता में सम्मेलन आरम्भ हुआ। सम्मेलन में आये लोगों ने राज्य की आज्ञा का विरोध करके तिरंगे के साथ नगर में जुलूस निकालने का निश्चय किया। 1 जुलाई, 1946 को नगर के बाजारों में प्रजा परिषद् का जुलूस निकाला गया। जोश में भरी जनता आगे बढ़ रही थी कुछ नौजवानों ने जोश में आकर झण्डे फहरा दिये।
सिपाहियों ने कार्यकर्ताओं से झण्डे छीनने की कोशिश की, किन्तु वे सफल नहीं हो सके। जुलूस के बाद पुनः अधिवेशन की कार्यवाही आरम्भ हुई ही थी कि समाचार मिला- “स्टेशन से हाथों में तिरंगा लिये आने वाले व्यक्तियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।” सम्मेलन में खलबली बच गई । उत्साहित कार्यकर्ता अपने साथियों को छुड़ाने के लिए रेस्ट हाउस की ओर बढ़ चले। रास्ते में पुलिस ने जगह-जगह लाठी चार्ज किया। किन्तु वे भीड़ के रूप में आगे बढ़ते ही चले गये । रेस्ट हाउस के बाहर हुए गोली चार्ज में अनेकों व्यक्ति घायल हुए जिनमें से एक वीरबल सिंह थे।
पाण्डाल में एक खाट पर उनकी घायल देह पड़ी थी। शरीर से रिस-रिस कर खून निकलता जा रहा था। सिपाहियों ने पाण्डाल को घेर रखा था, अतः उन्हें अस्पताल ले जाना भी असम्भव था। बड़ी देर बाद उन्हें अस्पताल पहुँचाया जा सका। शरीर से बहुत सा रक्त निकल गया था। डॉक्टर उन्हें नहीं बचा सके। मरते-मरते वह वीर अपनी मुट्ठी में पकड़ा तिरंगा छोड़कर बोला- इस झण्डे की लाज अब तुम्हारे हाथ है।
Amar Shaheed Birbal Singh का अंतिम समय और बलिदान
रायसिंह नगर में शव का जुलूस निकाला गया। नगर के गणमान्य लोग और सम्मेलन में आये सम्भागी शव यात्रा में चल रहे थे। कहते हैं ऐसा जुलूस रायसिंह नगर तो क्या बीकानेर में भी कभी नहीं निकला। शहीद का शरीर जलकर राख यशगाथा सदा-सदा के लिए अमर हो गयी। गया किन्तु उसकी रायसिंह नगर के रेस्ट हाउस के पास श्री वीरबल सिंह की याद अमर बनाये रखने के लिए एक मूर्ति स्थापित की गई है जहाँ प्रति वर्ष 30 जून व 1 जुलाई को लोग अमर शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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FAQs
Ans-बीरबल सिंह ढालिया जी राजस्थान के गंगानगर जिले के रामसिंह नगर के निवासी थे। वे 1936 से बीकानेर प्रजा परिषद् के सदस्य थे और सामंती अत्याचारों का विरोध करने में तथा नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के हर आन्दोलन में आगे रहते थे।