Biography of Amar Shaheed Sagarmal Gopa- राजस्थान के देशी राजाओं के अत्याचारों का प्रबल विरोध करने वाले महान् स्वतंत्रता सैनानी सागरमल गोपा का जन्म 3 नवंबर 1900, जैसलमेर के एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री असेराज राज्यकीय सेवा में थे। किन्तु उन्हें गुलामी की सेवा पसन्द नहीं थीं अत: वे अपने पुत्र से कहा करते थे- मेरी राय मानो तो कभी जैसलमेर स्टेट की नौकरी मत करना। पिता श्री के निर्देश का पालन करने की इच्छा लिए श्री गोपा अपने परिवार सहित नागपुर चले गए थे।
सागरमल गोपा जी कौन थे?
श्री सागरमल गोपा जी बचपन से ही क्रांतिकारी देशभक्त थे। उन्हें श्री रघुनाथ सिंह जी से राजनीतिक संघर्ष की प्रेरणा मिली और वे राष्ट्रवादी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। उन्होंने वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया और अपने क्रांतिकारी कार्यों से ब्रिटिश सरकार के लिए बाधाएँ उत्पन्न कीं। उन्होंने जैसलमेर की जनता को अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए अथक संघर्ष किया और ‘जैसलमेर में गुंडाराज’ और ‘रघुनाथ सिंह का मुकादमा’ नामक दो महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं। उनकी क्रांतिकारी विचारधारा और गतिविधियों के कारण जैसलमेर का शाही परिवार उनके प्रति दयालु नहीं था। 25 मई 1941 को उन्हें कैद कर लिया गया और विभिन्न प्रकार की यातनाएँ दी गईं। 3/4 अप्रैल 1946 को उन्होंने जेल में अंतिम सांस ली।
महान् स्वतंत्रता सेनानी सागरमल गोपा भारत के स्वतंत्रता में कैसे कूदे?
सन 1921 में देश में चल रहे असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के पश्चात् श्री सागरमल गोपा जी देशी राज्यों के आन्दोलनों में खास दिलचस्पी लेने लगे । जैसलमेर और हैदराबाद में उनके प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था। किन्तु वे अपनी धुन में मगन, देशी राज्य लोक परिषद् के सदस्य उसके कार्यक्रमों में पूर्णत: भाग लेते रहे।
स्वतंत्रता संग्राम के इन्हीं दिनों में सागरमल जी ने अपने क्रिया-कलापों से जैसलमेर राज्य प्रशासन को पूरी तरह उजागर कर दिया था। राज्य के शोषण एवं दमन पर प्रकाश डालने वाले कई लेख लिखे और कई पुस्तकें लिखकर उन्होंने राज्य के दमन और कुचक्रों को जन-साधारण में फैला दिया था। फलतः अधिकारियों एवं स्वयं राजा का उन पर नाराज होना स्वाभाविक था।
1939 में अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् सागरमल गोपा जी अपने घर आना चाहते थे। किन्तु जैसलमेर उनके लिए खतरे से खाली नहीं था। उन्होंने अंग्रेज रेजिडेन्ट को निवेदन करके जैसलमेर में रहने की स्वीकृति माँगी। रेजिडेन्ट ने पत्र व्यवहार करके जैसलमेर के राजा से उनके जैसलमेर प्रवेश तथा वहाँ रहने पर अच्छा व्यवहार करने का अनुरोध किया। राजा जी की स्वीकृति मिलने पर श्री सागरमल गोपा जी को रेजिडेन्ट ने सूचित किया कि जैसलमेर में उनके प्रति कोई दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा। किन्तु आगे चलकर यह आश्वासन पूर्ण रूप से धोखेबाजी से भरा षड्यन्त्र ही सिद्ध हुआ।
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Amar Shaheed Sagarmal Gopa का देश के लिए बलिदान और अंतिम समय
जैसलमेर में उन्हें कुछ समय बाद ही गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। एक वर्ष तक तो उन्हें काल कोठरी में रखा गया। दूसरे वर्ष से उन पर तरह-तरह के जुल्म किये जाने लगे। जेल में उन पर किये जा रहे अत्याचारों से क्षुब्ध होकर श्री जयनारायण व्यास ने पोलिटिकल एजेन्ट को स्वयं जैसलमेर जाकर वस्तु स्थिति का अध्ययन करने का निवेदन किया। 6 अप्रेल, 1946 को पोलिटिक्स एजेन्ट और रेजिडेन्ट ने जैसलमेर जाने का कार्यक्रम बनाया।
अंग्रेज अधिकारियों के जाने के तीन दिन पहले दोपहर में यह समाचार फैल गया कि श्री सागरमल गोपा जी ने अपने शरीर पर आग लगा दी है। यह सब कैसे हुआ और क्यों हुआ ? किसी के कुछ समझ में नहीं आया। सरकार ने भी किसी के समझने-समझाने का अवसर नहीं दिया। 4 अप्रैल 1946 Amar Shaheed Sagarmal Gopa जी ने देश के लिए अपना अमर बलिदान दे दिया और सदा सदा के लिए चिर निंद्रा में सो गए थे.
27 अप्रैल, 1946 को पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने विस्तृत और अधिकृत बयान देकर इस घटना का कच्चा चिट्ठा जन-साधारण के सम्मुख प्रस्तुत किया। मौत की हालत में भी उनकी पत्नी को उनसे नहीं मिलने दिया गया। राजनैतिक कार्यकर्त्ता के साथ ऐसा दुर्व्यवहार शर्म की बात है।
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अमर शहीद सागरमल गोपा जी का जीवन परिचय
FAQs
Ans- अमर शहीद सागरमल गोपा जी का जन्म जैसलमेर के एक भाह्माण परिवार में सन 3 नवंबर 1900 में हुआ था.