Paaneepat ka pratham yuddh- पानीपत का प्रथम युद्ध भारत में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर और दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच 1526 ई. में लड़ा गया था. 1503 ई. में अपने घुमक्कड़ जीवनकाल में जब बाबर दिखकाट नामक ग्राम के मुखिया का अतिथि था तो मुखिया की 111 वर्षीया माता से उसने तैमूर के भारत आक्रमण की कथा सुनी. यह वृत्तांत सुनकर उसकी कल्पना प्रज्ज्वलित हो उठी और अपने पूर्वज के भारत आक्रमण को किसी दिन दुहराने का उसने संकल्प कर लिया. लेकिन दक्षिण में अपने भाग्योदय की खोज के लिए उसने तभी निश्चय किया जब पश्चिमोत्तर प्रदेशों में उसकी आकांक्षालता अंतिम रूप से मुरझा गई.
उसने भारत भूमि को शत्रु व युद्धों व लूट-मार से बचाने के लिए भारत में ही चार भोजना बनाई ताकि भारत की सुरक्षा की जा सके. और भारत में नवीन शक्तियों को विकलित किया जा सके ऐसा तब किया गया. जब वह काबुल में राजा के पद पर आसीन था. पहली योजना को सन् 1519 ई. में क्रियान्वित किया गया जो कि यूसुफजई जाति के विरुद्ध था.
दूसरी योजना सितंबर, 1519 ई. में इसी जाति के लोगों को अपने बस में करने के लिए किया. तीसरी योजना 1520 ई. में क्रियान्वित किया गया. चौथी योजना 1524 में क्रियान्वित किया गया जब पंजाब के गवर्नर दौलतखाँ लोदी का निमंत्रण प्राप्त हुआ. लेकिन इन चारो योजनाओं में उसक विशेष सफलता नहीं मिली. लेकिन इस अभियान से उसे बल अवश्य मिला. अन्तोगत्वा उसने 1526 ई. में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से युद्ध कर उसे पराजित किया और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली थी.
पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ था?
पानीपत के प्रथम युद्ध के लिए बाबर ने अपना पहल कदम 1526 ई. में भारत में रखा इसका पता लगते ही हुमायूँ भी उससे मिल गया. दौलतखां और गाजीखां डर से भयभीत थे इसलिए यह मिलवात के किले में छुप गए. बाबर से यह सूचना सुनी कि आलमयां के सम्बन्ध खत्म हो गए हे और दिल्ली पर हमला किया गया है उसमें भी वह असफल हो गए है. तुरंत उस दुर्ग के चारों ओर घेरा डाल दिया और दौलतखाँ को आत्मसमर्पण के लिए बाध्य किया. उसने दौलतखाँ को अपने सम्मुख उपस्थित किए जाने की आज्ञा दी.
बाबर ने हुक्म दिया कि “जिन दो तलवारों को कमर में बाँधकर दौलतखाँ मुझसे लड़ने के लिए तैयार हुआ था. उन तलवारों को गर्दन में लटकाए हुए वह मेरे सामने उपस्थित हो!” जैसे ही दौलतखाँ ने बाबर के सम्मुख झुकने में विलंब किया, बाबर ने आज्ञा दी कि उसकी टाँगे खींच ली जाएँ जिससे वह झुक जाए और अपने विद्रोही व्यवहार के लिए लज्जित हो. इसके पश्चात उसे भेरा नगर में बंदी बनाकर भेज दिया गया, किंतु यहाँ जाते हुए मार्ग में दौलतखाँ की मृत्यु हो गई. लगभग इसी समय आलमखाँ बड़ी दयनीय दशा में बाबर की शरण में आया. बाबर ने एक बार फिर पंजाब को सुगमता से अधिकृत कर लिया.
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अब दूसरा कदम इब्राहीम लोदी से संघर्ष करने का रह गया था. पंजाब की विजय की अपेक्षा यह कार्य अधिक कठिन था, अतः बाबर ने इसके निमित्त हर प्रकार की आवश्यक तैयारियाँ प्रारंभ कर दी और लोदी उम्मीदवार आलमखाँ के प्रति पूरा ध्यान दिया, क्योंकि उसकी उपस्थिति निश्चय ही बड़े राजनीतिक महत्त्व की थी. जैसे ही वह दिल्ली की ओर अग्रसर हुआ, उसे दिल्ली राजदरबार के अनेक सरदारों की ओर से सेना-सहायता के आश्वासन मिले. संभवतः इसी समय चित्तौड़ के राणा सांगा ने इब्राहीम पर सम्मिलित आक्रमण करने का प्रस्ताव भेजा. जब आक्रमणकारी की इच्छा स्पष्ट प्रतीत हो गई, तो इब्राहीम ने एक विशाल सेना एकत्र की और वह पंजाब की ओर उससे युद्ध करने के लिए चल पड़ा.
साथ ही दो प्रमुख दस्ते उसने हिसार की ओर भेज दिए. इनमें से एक को हुमायूँ ने मार भगाया. इसी प्रकार दूसरे दस्ते को भी मुग़लों ने मार-पीटकर पीछे धकेल दिया. कुछ दूर और बढ़ने के पश्चात बाबर पानीपत पहुँच गया और वहाँ उसने अपना शिविर डाल दिया. बाबर बहुत शक्तिशाली व बलवान तथा साथ ही साथ विद्धान राजा था उसने अपनी अच्छाई और बुद्धिनता का वर्णन करते हुए एक पुस्तक लिखी बाबरनाला और उसमें उसने यह बताया है कि उसने केवल 12 हजार सेनिकों की सेना लेकर वह इब्राहीम लोदी से लड़ा ओर उसे पराजित कर दिया.
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Paaneepat ka pratham yuddh ka varnan
बाबर दौलतखाँ पर विजय प्राप्त करने के बाद उसकी सेना में भारी अभिवृद्धि हो चली थी. क्योंकि भारत के सहस्त्रों धनलोलुप योद्धा उसका साथ देने को पूर्ववत तैयार थे. और अनेक प्रतिष्ठित सामंतों ने पहले से ही उसके साथ सम्मान-य नियत कर लिया था, तो ऐसी स्थिति में उसकी पानीपत की सैन्य शक्ति 25,000 से कम किसी भी दशा में न रही होगी. बाबर ने सात सौ गतिशील गाड़ियों (अरावा) की पंक्तियों को गीली खाल के रस्सों से आपस में बाँधकर अपनी सेना की रक्षार्थ फौज के आगे खड़ा कर दिया था. गाड़ियों के बीच उसने काफी रास्ता छोड़ रखा था, जिसमें होकर उसके सैनिक आक्रमण कर सकें.
उसने तोपों के प्रत्येक जोड़े के मध्य छह-सात गतिशील बचाव-स्थान (टूरा) खड़े कर रखे थे, जिससे तोपचियों को शरण प्राप्त हो सके इस रक्षात्मक श्रेणी के पीछे ही तोपखाना व्यवस्थित था. उस्तादअली दाहिनी ओर था और मुस्तफा बाईं ओर. तोपखाने के पीछे उसके अग्रगामी रक्षकों (Advance Guard) का जमाव था, जिसकी कमान खुसरू कोकुल्ताश और मुहम्मदअली जंग के हाथों में थी. इसके पीछे सेना का केंद्र-स्थल (गुल) था जहाँ वावर स्वयं संचालक के रूप में उपस्थित था. यह केंद्र दाहिना केंद्र और बायाँ केंद्र के नाम से दो खंडों में विभाजित था. बाबर की सेना का दाहिना अंग कटे हुए पेड़ों तथा मिट्टी की दीवार और खाइयों से सुरक्षित किया गया था.
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सेना के दाहिने अंग की कुछ दूरी पर तुलुगमा नियुक्त किया गया था और सेना के बाएँ अंग की बाई तरफ कुछ दूर दूसरे तुलुगमा को स्थान दिया गया था. इस पंक्ति की दाहिनी ओर ठीक सिरे पर किलेबंदी करने वाला दाहिना दल अवस्थित था. इनके पीछे अब्दुल अजीज की अध्यक्षता में अनुभवी घुड़सवारों की कोतल सेना थी. दाहिना सिरा हुमायूँ और ख्वाजा किलाँ के कमान में था और बायाँ सिरा मुहम्मद सुल्तान मिर्ज़ा और मेहदी. ख्वाजा के कमान में बावर के कथनानुसार इब्राहीम लोदी की सेना में एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी थे.
पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 ई
किंतु यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि उस काल में प्रत्येक योद्धा के साथ कई एक शिविर-रक्षक और नौकर-चाकर चला करते थे. ऐसी दशा में इब्राहीम की युद्ध-शक्ति चालीस हजार आदमियों से अधिक न रही होगी. इस सेना में ऐसे भी दस्ते थे जिनका संगठन समय की आवश्यकता के विचार से शीघ्रता में कर लिया गया था. ये दस्ते प्रचलित चार खंडों में विभाजित किए गए थे-अग्रगामी रक्षक दल, केंद्रीय दल, दाहिना दल और बायाँ दल. 12 अप्रैल, 1516 ई. को दोनों ओर की सेनाएं आमने-सामने आकर खड़ी हो गई, किंतु आठ दिन तक किसी ने भी आक्रमण का श्रीगणेश नहीं किया.
20 अप्रैल की रात्रि में बाबर ने अपने 4-5 हजार सैनिकों को आक्रमण करने के लिए अफग़ान शिविर की ओर भेजा, किंतु उसे सफलता नहीं मिली और इस घटना ने इब्राहीम को प्रातःकाल ही पलटन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. 21 अप्रैल को दोनो सेनाओं में बहुत भीष्ण युद्ध छिड़ गया और लोदी लम्बे समय तक भूमि खड़े रहने के उद्देश्य से अपनी सेना को धीमी गति से आगे बढ़ने की कहा परन्तु वह बाबर की शक्तिशाली सेना के सामने टिक नहीं सके और युद्ध भूमि में हलचल सी मच गई. इस अवसर को अपने हित में देखकर बाबर ने किलेबंदी वाली तुलुगमा सेनाओं को तुरंत घूमकर पीछे से आक्रमण करने की आज्ञा दी.
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उधर इब्राहीम ने अपनी फौजों को बाबर की सेनाओं के बाएँ खंड पर आक्रमण की आज्ञा दी, जिससे वह घिराव में आ गई. बाबर ने तुरंत अपने केंद्र से कोतल (reserve) सेना भेजी, जो अफगान सेना के दाहिने खंड को खदेड़ने में सफल रही. इस समय तक दोनों सेनाओं के सभी दस्ते युद्ध में भाग लेने लगे थे और युद्ध इस प्रकार सामान्य स्थिति में आ पहुँच और बाबर ने अपने तोपचियों को आग बरसाने की आज्ञा दी. इस प्रकार लोदी सेना घेर ली गई और उसका उफान नष्ट कर दिया गया. उसके सामने तोपखाने के गोलों की वर्षा हो रही थी और पीछे तथा दाएँ-बाएँ तीरों की बौछार शस्त्रास्त्रों की विशेषता और युद्ध-योजना की कुशलता से संपन्न न होते हुए हुए भी इब्राहीम के कमान में हिंदुस्तान की सेना जी-तोड़कर युद्ध करती रही.
युद्ध के क्या परिणाम हुए?
प्रातःकाल से दोपहर यक युद्ध चलता रहा और बाबर की उत्कृष्ट युद्ध-व्यवस्था तथा सैन्य संचालन शक्ति ने शत्रु पर विजय पाई इब्राहीम लोदी अंत समय तक बहादुरी से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ. उसके 15 हजार आदमी युद्ध में धराशायी हुए. इन हताहतों में ग्वालियर नरेश विक्रमाजीत भी थे, जो सच्चे राजपूत की भाँति इब्राहीम की ओर से लड़ते रहे, यद्यपि इब्राहीम ‘उनका शत्रु रह चुका था. बाबर ने लिखा है, “जब आक्रमण प्रारंभ हुआ तो सूर्यनारायण ऊँचे चढ़ गए थे युद्ध दोपहर तक ठना रहा, मेरे सैनिक विजयी हुए और शत्रु को चकनाचूर कर दिया गया. सर्वशक्तिमान परमात्मा की अपार अनुकम्पा से यह कठिन कार्य मेरे लिए सुगम बन गया और यह विशाल सेना आधे दिन में ही मिट्टी में मिल गई.
पानीपत का युद्ध देखा जाए तो बहुत रोमांचक व याद्गर साबित हुआ इब्राहम लोदी की सेना बाबर की सेना के सामने कमजोर पड़ गई और उन्हें मुहँ की खानी पड़ी यही तक कि इब्राहम भी युद्ध भूमि में मारा गया और उनके सैनिक भी मृत्यु को प्राप्त हो गए. हिंदुस्तान की सर्वोच्च सत्ता कुछ काल के लिए अफग़ान जाति के हाथों में से निकलकर मुगलों के हाथों में चली गई, जिन्होंने 15 वर्ष के मध्यांतर से दो शताब्दियों तक उसे हथिया कर रखा.
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FAQs
Ans- पानीपत का प्रथम युद्ध 21-अप्रैल 1526 ईस्वी में हुआ था.
Ans- पानीपत का प्रथम युद्ध मुगल बादशाह बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य हरयाणा के पानीपत जगह पर हुआ था?
Ans- पानीपत के प्रथम युद्ध में मुगल बादशाह बाबर ने इब्राहिम लोदी को हरा कर भारत में मुगल सतनत की नीव रखी थी.