रणबाकुरों की धरती शेखावाटी (झुंझुनू, सीकर ,चूरू और नागौर का कुछ भाग) का जिला झुंझुनू अपनी पहचान का मोहताज नहीं है. यहाँ के फौजी अपनी वीरता के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते है. वर्तमान में पुरे भारत में सबसे जायदा फौजी सर्विस और लगभग साठ हजार से जायदा सैनिक रिटायर हो चुके है. साथ ही झुंझुनू राजस्थान का सबसे शिक्षित जिला भी है. हम यहाँ कम्पनी हवलदार मेजर पिरु सिंह शेखावत की जीवनी (Biography Of Param Vir Piru Singh Shekhawat). और उनसे जुड़ी वो रोचक जानकारी शेयर करने वाले है. जिसके बारे में अब तक आप अनजान थे. तो मित्रों चलते है और जानते है पीरू सिंह शेखावत जी की अद्धभुत जानकारी. कंपनी हवलदार मेजर पीरु सिंह शेखावत राजस्थान के पहले और देश के दूसरे सैनिक थे, जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
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जयपुर से आप झुंझुनू में प्रवेश करते है तो रेलवे स्टेशन के 100 मीटर आगे पहला सर्किल पड़ा है. उसका नाम सर्विस नंबर 2831592 कंपनी हवलदार स्वर्गीय मेजर पीरू सिंह जी स्मृति में बनाया गया है. यहाँ पीरू सिंह शेखावत जी की याद में तत्कालीन राजस्थान के मुख्य मंत्री भैरोसिंह शेखावत ने ताम्र मूर्ति का अनावरण किया था. और इस चौक को पीरू सिंह सर्किल के नाम से जाना जाता है. देश के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाकर देश की रक्षा पीरू सिंह जी ने की थी. ऐसे में हमारा भी फर्ज बनता है, ऐसे महान परमवीर चक्र विजेता पीरू सिंह भारतीय सेना के जाबाज सिपाही की जीवनी हम अपने आने वाली पीढ़ी तक पहुचाये और उनमे देश भक्ति के बीज अंकुरित करे.
पीरू सिंह शेखावत कौन थे? जीवन परिचय
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह परमवीर चक्र का जन्म गांव पोस्ट बेरी जिला झुंझुनू राजस्थान में कृष्णा जन्माष्टमी विक्रम संवत 1974 में हुआ था. इनके पिता का नाम स्वर्गीय ठाकुर लाल सिंह शेखावत और माता जी का नाम श्रीमती जड़ाव कंवर थी. कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह परमवीर चक्र का जन्म गांव पोस्ट बेरी जिला झुंझुनू में कृष्णा जन्माष्टमी विक्रम संवत 1974 (20 मई 1918) में हुआ था. इनके पिता का नाम स्वर्गीय ठाकुर लाल सिंह शेखावत और माता जी का नाम श्रीमती जड़ाऊ कंवर थी.
पीरू सिंह जी को बचपन से ही यह धुन सवार थी कि बड़ा होकर सैनिक बनना हैं. जैसा अक्सर झुंझुनू के बच्चो में होता है, जो सेना में जाने के लिए बचपन से तैयारी शुरू कर देते है. शेखावत अपने भाई बहिनों में सबसे छोटे थे. और अपने घर में ही साधारण अक्षरज्ञान के बाद सेना में भर्ती हुए. तथा छठवीं राजपूताना राइफल में सेवा करने लगे.
Summary
नाम | पीरू सिंह शेखावत |
उपनाम | कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह परमवीर चक्र |
जन्म स्थान | गांव बेरी, जिला झुंझुनू, राजस्थान |
जन्म तारीख | 20-मई-1918 |
वंश | शेखावत |
माता का नाम | श्रीमती जड़ाव कंवर |
पिता का नाम | ठाकुर लाल सिंह शेखावत |
पत्नी का नाम | — |
प्रसिद्धि | परमवीर चक्र |
पेशा | ब्रिटिश भारतीय सेना, भारतीय सैनिक |
बेटा और बेटी का नाम | —- |
गुरु/शिक्षक | — |
देश | भारत |
राज्य छेत्र | राजस्थान के झुंझुनू |
धर्म | हिन्दू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 18-जुलाई-1948 टिपवाल जम्मू एंड कश्मीर |
पोस्ट श्रेणी | Biography Of Param Vir Piru Singh Shekhawat (परमवीर पीरू सिंह शेखावत की जीवनी) |
परमवीर कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह सेना में क्या योगदान दिया?
पीरू सिंह जी का मई 1936 को सेना में जाने का सपना साकार हुआ और वे सेना में भर्ती होकर पंजाब के झेलम में तैनात हुए. शुरू में पीरू सिंह को पढ़ना लिखना अरुचिकर लगता था. वे अक्सर हॉकी और फुटबाल खेलते और साथ ही सांगरी तोड़ना और पशु को चराते थे. लेकिन सेना में भर्ती होने के बाद वे भारतीय सेना के प्रथम श्रेणी के प्रमाण पत्र की तैयारी में जुट गये थे. और उनका मन पढाई में लगने लगा था. पिरु सिंह ने प्रमाण पत्र की परीक्षा के अलावा अन्य परीक्षाएं भी पास कर ली. और 7 अगस्त 1940 को उन्हें लांसनायक के पद पर पदोन्नत कर दिया गया. वे एक अच्छे खिलाड़ी भी थे, आपने अपनी रेजिमेंट का हॉकी, बास्केटबाल, लम्बी दोड़ आदि में प्रतिनिधित्व भी किया था.
सन 1945 में वे राजपूताना राइफल्स की छठी बटालियन की D कम्पनी के हवलदार मेजर के पद पर नियुक्त हो गये. पीरू सिंह शेखावत ने 1946 में दूसरें विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्र्मंडल सेना में अपनी सेवाएं दी थी. सितम्बर 1947 में जब वे भारत लौटे तो भारत का बंटवारा हो चुका था और भारत आजाद हो चूका था.
भारत-पाक विभाजन के बाद कश्मीर पर कबाइलियों का हमला और पिरु सिंह शेखावत की बहादुरी
भारत-पाक विभाजन के बाद कश्मीर पर कबाइलियों के चोले में पाकिस्तानी आर्मी की सह में उनके सैनको ने हमला कर भारत की भूमि का कुछ हिस्सा दबा लिया. वहां उन्होंने बहुत मार काट की यहाँ तक की वे श्रीनगर पहुंचने ही वाले थे. तो कश्मीर के तत्कालीन नरेश ने अपनी रियासत के भारत में विलय की घोषणा कर दी. तब भारत के होम मिनिस्टर वलभ भाई पटेल ने भारतीय सेना कश्मीर में उतारने का आदेश दिया।
18 जुलाई 1948 को कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह छठवीं राजपूताना राइफल्स डी कंपनी के एक सेक्शन के साथ टिपवाल क्षेत्र के दक्षिण दिशा की घाटी पर कब्जा किए हुए शत्रु पर आक्रमण कर क्षेत्र खाली कराने का आदेश मिला। जैसे ही आक्रमण प्रारंभ किया, शत्रु की मशीन गन की गोलियों दोनों तरफ से आने लगी. तथा सामने के मोर्चे से हथ गोले आने लगे. पिरु सिंह शेखावत उस समय आगे वाली सेक्शन के साथ चल रहे थे.
आधी से अधिक सेक्शन के जवान वीरगति प्राप्त हो जाने और घायल हो जाने पर भी उनके उत्साह में कोई कमी नहीं आई. तथा अपने शेष रहे जवानों को उत्तेजित कर दुश्मन सेना के नजदीक वाली मशीन गन की तरफ बढ़े। दो बनकर नस्ट करते हुए, उनको सर में गोली लग गयी थी. दुश्मन के हथगोला से बुरी तरह घायल वह लहूलुहान और अपनी सुरक्षा का ध्यान ना रखते हुए उन्होंने एक हथगोला फेंका जो तीसरे बनकर को तबाहा कर दिया. और टिपवाल के दक्षिण दिशा की घाटी पर कब्जा तिरंगा फेरा दिया था. उनके अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
भारत का पहला परम वीर चक्र किसको मिला था?
कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह (श्री पीरू सिंह शेखावत) भारतीय सेना का सब से बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीरचक्र आजाद भारत के पहले पांच लोगो को मिला. उनमें से एक थे परम वीर मेजर पीरु सिंह शेखावत. ये झुंझुनू और राजस्थान के रणबाकुरों के लिए गर्व की बात है.
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FAQs
Ans- मेजर पीरू सिंह का जन्म गांव पोस्ट बेरी जिला झुंझुनू राजस्थान में हुआ था.
Ans- कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह राजस्थान में पहले परमवीर चक्र से सम्मानित फौजी है.