लोहार्गल सूर्य मंदिर को पांडवो के वनवास और महाभारत के युद्ध के बाद पांडवो को जो पछताव हुआ उसके के लिए जाना जाता है. लोहार्गल को शेखावाटी का मिनी हरिद्वार भी कहा जाता है. क्यों की सावन के महीने में शेखावाटी (सीकर ,चूरू ,झुंझुनू ) और हरयाणा से शिव भगत सूर्य मंदिर लोहार्गल से कावड़ लाते है. और भगवान शिव जी को अर्पित करते है. (Lohargal or Kirodi Nawalgarh Jhunjhunu Rajasthan) किरोड़ी और लोहार्गल वर्षा ऋतु में एक रमणीय स्थल है. दोसत वर्षा ऋतू में चारो और हरयाली से लदे पेड़ पौधे और यहाँ बंदरो के समूह पेड़ों पर उछल कुछ करते नजर आएंगे. इस लिए किरोड़ी को शेखावाटी का माउंट आबू और लोहार्गल को शेखावाटी का हरिद्वार कहा जाता है.
लोहार्गल कहाँ स्थित है और क्यों प्रसिद्ध है
झुंझुनू जिले की नवलगढ़ तहसील की लोहार्गल पंचायत में स्थित है. यह तीर्थ शेखावाटी हरिद्वार कहलाता है. क्यों की लोहार्गल से 24 कोसी परिक्रमा शुरू होती है. और बाबा मालकेतु के मंदिर पर खतम होती है. लोहार्गल 24 कोसी परिक्रमा में हर साल लाखों सर्धालु भाग लेते है. श्रधालुओ की सेवा में स्थानीय लोग सच्चे मन से सेवा करते है. लोहार्गल में प्रतिवर्ष भाद्रपद की अमावस्या को मेला भरता है. जिसमे लाखो श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, और मेले में भाग लेती है. दोस्तों लोहार्गल की कैरी का अचार बहुत प्रसिद्ध है. यहाँ आने वाले पर्यटक और भगत यहाँ का आचार जरूर लेकर जाते है.
लोहार्गल सूर्य मंदिर कहा है?
Lohargal or Kirodi/लोहार्गल सूर्य मंदिर और पवित्र सूर्य कुंड राजस्थान के झुंझुनू जिले के नवलगढ़ तहसील के गोलयाणा गांव के पास स्थित है. लोहार्गल अरावली पर्वत की घाटी में बसे उदयपुरवाटी कस्बे से करीब दस कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है. लोहार्गल का अर्थ है- वह स्थान जहाँ लोहा गल जाए. पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है. नवलगढ़ तहसील में स्थित इस तीर्थ ‘लोहार्गल जी’ को स्थानीय भाषा मारवाड़ी में लुहागरजी भी कहा जाता है.
राणी सती दादी मंदिर झुंझुनू
Summary
नाम | लोहार्गल | Lohargal or Kirodi |
पुराना नाम | लुहागरजी |
उपनाम | लोहार्गल जी, शेखावाटी का हरिद्वार |
स्थापना | पौराणिक |
स्थापना किसने की | पांडवों ने |
राज्य | राजस्थान |
जिला | झुंझुनू |
तहसील | नवलगढ़ |
किस लिए प्रसिद्ध है | पांडवों का पछतावा/और केरी के अचार/पांडवो की बेड़िया यही के पानी से गली थी |
भाषा | हिंदी, मारवाड़ी |
पर्यटक स्थल | सूर्य मंदिर लोहार्गल, किरोड़ी धाम, किरोड़ी घाटी, पलासकी, कोट बांध, शाकंभरी, नागकुण्ड, भगोवा, टपकेश्वर महादेव, शोभावती, खाकी अखाड़ा, बारह तिबारा, नीम की घाटी, डाबक्यारी, रघुनाथगढ़, रामपुरा खोरी कुण्ड |
सांसद का नाम | नरेंद्र सिंह खीचड़ |
क्षेत्र | अरावली पर्वत माला मध्य |
चुनावी क्षेत्र/तहसील | नवलगढ़ |
लोहार्गल को लुहागरजी क्यों कहते है?
दोस्तों एक मान्यता ये है की, जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. लेकिन जीत के बाद भी पांडव अपने परिजनों की हत्या के पाप से मन ही मन चिंतित थे. हजारों लोगों के पाप का दर्द देख, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस स्थल के तालाब में तुम्हारे हथियार, बेड़िया पानी में गल जाएगी. वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा और तुम्हे पाप से मुक्ति मिलेगी. जंगलो में घूमते-घूमते पाण्डव लोहार्गल आ पहुँचे. तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारी बेड़िया और हथियार गल गये. इसके बाद शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की थी. बेड़िया और हथियार गल गयी इस जगह को लोहार्गल जी कहते है.
लोहार्गल में अस्थियां विसर्जित क्यों की जाती है?
स्थानीय लोगों की मान्यता है, लोहार्गल में अस्थियां विसर्जित करने से उस मनुष्य को मुक्ति मिलती है. क्यों की जब पांडवो का कल्याण भी यही आ कर हुआ तो साधारण मनुष्य का कलयाण होना तो स्वाभाविक है. लोहारगल सूर्य कुंड पांडव वनवास और पश्चाताप के लिए जाना जाता है. इस लिए ही लोग लोहारगल को शेखावाटी क्षेत्र का हरिद्वार कहते है.
लोहार्गल सूर्य मंदिर और पवित्र सूर्य कुंड क्यों प्रसिद्ध है? (Why Is Lohargal Sun Temple and Holy Sun Kund famous?)
कहा जाता है की महाभारत युद्ध समाप्ति के पश्चात पाण्डव जब वनवास काट रहे थे और आपने भाई बंधुओं और अन्य स्वजनों की युद्ध में मारने के पाप से अत्यंत दुःखी थे. तब भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर वे पाप मुक्ति के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शन करने के लिए गए. भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जाए वहीं तुम्हारा पाप मुक्ति का मनोरथ पूर्ण होगा. पांडव जब अरावली में घूमते-घूमते लोहार्गल आ पहुँचे तथा जैसे ही उन्होंने यहाँ के सूर्यकुण्ड में स्नान किया, उनके सारे हथियार गल गये.
पांडव इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ राज की उपाधि से विभूषित किया. इस लिए लोहार्गल को शेखावाटी का हरिद्वार भी कहा जाता है। शेखावाटी में (झुंझुनू ,सीकर ,चूरू और नागौर का कुछ भाग) के लोग आज भी किसी की मृत्यु पर 12 दिने पुरे होने पर सभी परिवार के साथ मरे हुए वयक्ति के अंश यहाँ छोड़ के जाते है. ये इस लिए होता है की मान्यता है की जब यहाँ पांडवो के पापा धूल गए तो उनके भी धुलेंगे. लोहार्गल के सूर्य कुंड और मंदिर के सम्बंद में भगवान परशुराम का भी नाम जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि इस जगह पर परशुराम जी ने भी पश्चाताप के लिए यज्ञ किया तथा पाप मुक्ति पाई थी.
सालासर बालाजी मंदिर चूरू
Lohargal or Kirodi/लोहार्गल के सूर्य कुंड के अलावा 2 कुंड और है. यहाँ एक कुंड ठंडा पानी और एक में गरम पानी आता है. ये प्रकृति का चमत्कार ही है. सूर्य कुंड से निकले वाले पानी से आस पास के किसान खेती करते है. इस लिए लोहार्गल में हरियाली रहती है और आम के बाग आप को देखने को मिलेंगे. लोहार्गल में सावन में बरसात होने के बाद अरावली के मनोहरम दरस्य आप का मन मोह लेंगे. लोहार्गल की केरी (कच्चा आम) आचार बनाने के लिए विख्यात है.
चौबीस कोसी (24 कोस )परिक्रमा कब शुरू होती है ?When Does The 24th Kosi (24kos) Circumambulation Begin?
सावण मास में होने वाली चौबीस कोसी (24 कोस )परिक्रमा भी यही से शुरू होती है. ये साल में एक बार सावन महीने में लोहार्गल से सनान करने के बाद भगत मालकेत बाबा की चौबीस कोसीय परिक्रमा शुरू करते है. चौबीस कोसी परिक्रमा में देश विदेश से लाखो की संख्या में सरधालु आते है. सरधालु की खाने पान और रुकने की व्यवस्था स्थानीय लोगो और सामाजिक संस्थानों द्वारा सेवा भाव से की जाती है.
लोहार्गल में समय समय पर विभिन्न धार्मिक अवसरों जैसे ग्रहण, सोमवती अमावस्या आदि पर मेला लगता है. किंतु प्रतिवर्ष कृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक के विशाल मेले का विशेष महत्व है. जो पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहता है. कृष्ण जन्माष्टमी से अमावस्या तक लोहार्गल 24 कोसी परिक्रमा के लिए भग्तजन आते है.
रामदेवजी जी मंदिर रूणिचा
लोहार्गल से शुरू हुई 24 कोसी परिक्रमा का पहला पड़ाव किरोड़ी धाम होता है. करोड़ी के लिए श्रद्धालुओं पहाड़ी रास्ता चुनते है. यहाँ पर विश्राम करके शाकम्बरी माता होते हुए मालकेत बाबा के जयकारों के साथ नाचते गाते आगे बढ़ते है.
लोहार्गल से शुरू हुई 24 कोसी परिक्रमा के पड़ाव
सूर्यकुण्ड लोहार्गल से शुरू हुई 24 कोसी परिक्रमा का पहला पड़ाव किरोड़ी धाम होता है. गोल्याना शिव गौरा मंदिर, चिराना, चिराना घाटी, किरोड़ी धाम, किरोड़ी घाटी, पलासकी, कोट बांध, शाकंभरी, नागकुण्ड, भगोवा, टपकेश्वर महादेव, शोभावती, खाकी अखाड़ा, बारह तिबारा, नीम की घाटी, डाबक्यारी, रघुनाथगढ़, रामपुरा खोरी कुण्ड, गोल्याना से होते हुए लोहार्गल के सूर्यकुण्ड पर पहुंचकर 24 कोसी परिक्रमा संपन्न होती है.
किरोडी धाम (Kirodi Dham)
किरोड़ी धाम झुंझुनू जिले के नवलगढ़ तहसील के चिराना गांव के किरोड़ी नामक जगह पर पर अरावली की घाटी में स्थित है. किरोड़ी जाने के लिए बाय रोड उदयपुरवाटी के पहाडिला से रास्ता है. अगर आप चिराना से जाना चाहते है तो पैदल चिराना घाटी से किरोड़ी जा सकते है. किरोड़ी के आस पास खजूर और आम के पेड़ बहुत अच्छी संख्या में पाए जाते है. यहाँ साल भर हरयाली रहती है. क्यों की किरोड़ी में भी कुंड है उनका पानी दिन रात चलता है. इन कुंड में पानी पहाड़ो से आता है.
किरोड़ी धाम ऐतिहासिक विवरण (Kirodi Dham Historical Description)
कहा जाता है की किरोड़ी धाम में ककोर्टक नामक नाग ने सघन वृक्षावली व झरनों के मध्य यहां तपस्या की थी. कुलीन वंश के इस तपस्वी नाग को तपश्चर्या के दौरान रिषी द्वारा वरदान प्रदान किया तथा इस तीर्थ को कर्कोटिका नाम भी दिया. कहा जाता है की किरोड़ी धाम में ककोर्टक नामक नाग ने सघन वृक्षावली व झरनों के मध्य यहां तपस्या की थी. कुलीन वंश के इस तपस्वी नाग को तपश्चर्या के दौरान रिषी द्वारा वरदान प्रदान किया तथा इस तीर्थ को कर्कोटिका नाम भी दिया. लोकोक्तियों के अनुसार जब पांडव लोहार्गल से किरोड़ी धाम पहुंचे तो पाण्डवो की माता कुन्ती ने अपने मानसिक विवाद के निवारण के लिये पवित्र स्थल किरोडी तीर्थ मे तपस्या प्रारम्भ की जहां उनको काफी शांति मिली.
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वीर तेजाजी मंदिर
किरोड़ी धाम अजब है गर्म व ठण्डे पानी की माया. (Kirodi Dham is a strange Maya of hot and cold water)
दोस्तों प्रकृति की अदभुद् देन किरोडी धाम क्यों की किरोड़ी मे पाण्डवो की माता कुन्ति की चरण पादुकायें गर्म जल के कुण्ड पर आज भी स्थित है. तथा कुण्डो मे झरनों के शीतल व गर्म जल का प्रवाह निरन्तर बना रहता है. देखने वाली बात है की झरने से पानी पहले ठन्डे कुंड में प्रवेश करता है और उस से निकल कर दूरसे कुंड में गर्म हो जाता है. में अपने पड़ने वाले स्रोत जन को बताना चाहता हु. जीवन में एक बार किरोड़ी जरूर जाये में खुद 5 बार जा चूका हु, प्रकृति के चमत्कार आप खुद देख सकते हो.
किरोड़ी तीर्थ अरावली पर्वतमाला की गोद मे बसा है
शेखावाटी का आबू तीर्थ-स्थल कहलाता है चिराना का किरोडी धाम. लोहार्गल की चोबीस कोसीय परिक्रमा का प्रथम पडाव होता है किरोडी धाम. चिराणा से किरोडी की घुमावदार घाटी मे खडी चढ़ाई के कारण सर्धलुओ को थोडी कठिनाईयां होती है. परन्तु प्राकृतिक सूंदर मनहोर दरस्य के कारण कठिनाईयां महसूस नही होती है. यहां का सुरम्य वातावरण हरियाली से लदे पहाड बहुत ही मनमोहक है यहा हर साल वर्षा ऋतू में हजारो देशी-विदेशी पर्यटक आते रहते है.
करणी माता मंदिर देशनोक बीकानेर
किरोड़ी तीर्थ दर्शनीय स्थल व मंदिरों का इतिहास प्राचीन के साथ भी जुडा है
किरोड़ी तीर्थ मे प्रसिद्ध मंदिर श्री गिरधारी जी का है. ज्योतिषाचार्य श्री मान रणजीत स्वामी के अनुसार किरोड़ी तीर्थ का निर्माण संवत् 1652 से 1684 के बीच हुआ तत्पश्चात वैशाख सुदी तृतिया (अक्षय त्रितिया) सवंत 1684 को मुर्ति स्थापना हुई. किरोड़ी तीर्थ मंदिर मे भगवान कृष्ण व राधा की काली व सफेद चित्ताकर्षक मुर्तियां विराजमान है. किरोड़ी तीर्थ मन्दिर व्यवस्था हेतु लगभग 250 बीघा जमीन जागीर के रूप मे प्रदान की गई. किरोड़ी तीर्थ मंदिर मे महंत परम्परा के चलते यहां के महंत को 108 की उपाधि से विभुषित किया जाता है. भारत देश स्वतंत्रता के पश्चात जागीर होने के बाद मंदिर के प्रथम महंत श्री 108 गोवर्धन दास जी थे. वर्तमान मे महंत श्री 108 राधेश्याम दास है जो की तीर्थ स्थल के व्यवस्थापक भी है.
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FAQs
Ans-शेखावाटी का आबू तीर्थ-स्थल किरोड़ी को कहा जाता है.
Ans- शेखावाटी का हरिद्वार लोहार्गल को कहते है.
Ans- झुंझुनू, सीकर, जयपुर, दिल्ली से कई बसें चिराना उदयपुरवाटी के लिए हर समय चलती है. गोल्याणा, चिराना में पहुंचने के बाद Lohargal or Kirodi आप पैदल जा सकते है. और उदयपुरवाटी पहुंच कर कार और बाइक से Lohargal or Kirodi जा सकते है.